धर्म ग्रंथों से जानिए कैसे लोगों से दोस्ती करने से बचना चाहिए, नहीं तो बाद में पछताना पड़ता है

Published : Jul 16, 2021, 09:46 AM ISTUpdated : Jul 16, 2021, 12:12 PM IST
धर्म ग्रंथों से जानिए कैसे लोगों से दोस्ती करने से बचना चाहिए, नहीं तो बाद में पछताना पड़ता है

सार

जीवन में दोस्तों का होना बहुत जरूरी है। कुछ लोग सिर्फ दोस्त होने का दावा करते हैं, लेकिन वक्त आने पर भाग निकलते हैं, जबकि कुछ मित्र हर परिस्थिति में आपका साथ देते हैं।

उज्जैन. जीवन में हमेशा हमें ऐसे ही सच्चे दोस्त की तलाश रहती है। दुनिया के तमाम रिश्ते जहां जन्म लेते ही हमसे जुड़ जाते हैं, वहीं मित्र को हम खुद चुनते हैं। धर्म ग्रंथों से जानिए किस तरह के लोगों से दोस्ती नहीं करनी चाहिए…

दोहा 1
सेवक सठ नृप कुपन कुनारी,
कपटी मित्र सूल समचारी।
सखा सोच त्यागहु बल मोरें
सब बिधि घटब काज में तौरें।।

अर्थ- मूर्ख नौकर, कपटी राजा, चरित्रहीन नारी और दुष्ट मित्र उस तीर के समान होते हैं, जो चुभने पर सिर्फ और सिर्फ कष्ट देता है, इसलिए ऐसे लोगों से दोस्ती करने की भूल न करें। 


दोहा 2
आगे कह मृदु बचन बनाई,
पाछे अनहित मन कुटिलाई।
जाकर चित्त अहि गति सम भाई,
अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई।।

अर्थ- जो मित्र आपके सामने आपकी तारीफ और आपके पीठ पीछे बुराई करते हैं, वह सांप की चाल के समान टेढ़े होते हैं। ऐसे मित्रों से हमेशा दूरी बनाए रखना ही भला होता है। 

श्लोक
अवलिपतेषु मूर्खेषु रौद्रसाहसिकेषु च।
तथैवापेतर्मेषु न मैत्रीमाचरेद् बुध:।।

अर्थ- एक विद्वान पुरुष को कभी भी अभिमानी, मूर्ख, क्रोधी, साहसिक और धर्महीन पुरुषों के साथ दोस्ती नहीं करनी चाहिए। ऐसे लोग हमेशा दु:ख का कारण बनते हैं, इसलिए इनसे हमेशा बचकर रहना चाहिए।

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