Life Management: राजा ने साधु को राज-पाठ सौंप दिया, बाद में साधु ने उस राजा को नौकर बना लिया…फिर क्या हुआ?

कुछ लोग अपने काम को बोझ समझते हैं और किसी भी तरह उसे टालने की कोशिश करते हैं। या करते भी हैं तो बहुत ही खराब तरीके से। जबकि वो काम बोझ नहीं बल्कि उनकी जिम्मेदारी होती है। अपने काम के प्रति कभी गैर जिम्मेदार नहीं होना चाहिए।
 

उज्जैन. जो व्यक्ति अपने काम के प्रति जिम्मेदार नहीं होता, उसे भविष्य में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है हमारा जिम्मेदारी से करना चाहिए, उसे बोझ समझने की गलती न करें।
 

जब राजा बन गया राज्य का नौकर
एक राज्य में एक राजा राज करता था। उसका राज्य ख़ुशहाल था। धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी। राजा और प्रजा ख़ुशी-ख़ुशी अपना जीवन-यापन कर रहे थे। एक वर्ष उस राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। पानी की कमी से फ़सलें सूख गई। ऐसी स्थिति में किसान राजा को लगान नहीं दे पाए। 
लगान प्राप्त न होने के कारण राजस्व में कमी आ गई और राजकोष खाली होने लगा। यह देख राजा चिंता में पड़ गया। हर समय वह सोचता रहता कि राज्य का खर्च कैसे चलेगा? अकाल का समय निकल गया। स्थिति सामान्य हो गई, किंतु राजा के मन में चिंता घर कर गई। हर समय उसके दिमाग में यही रहता कि राज्य में पुनः अकाल पड़ गया, तो क्या होगा? इसके अतिरिक्त भी अन्य चिंतायें उसे घेरने लगी। पड़ोसी राज्य का भय, मंत्रियों का षड़यंत्र जैसी कई चिंताओं ने उसकी भूख-प्यास और रातों की नींद छीन ली।
वह अपनी इस हालत से परेशान था, किंतु जब भी वह राजमहल के माली को देखता, तो आश्चर्य में पड़ जाता। दिन भर मेहनत करने के बाद वह रूखी-सूखी रोटी भी छक्कर खाता और पेड़ के नीचे मज़े से सोता। कई बार राजा को उससे जलन होने लगती। एक दिन उसके राजदरबार में एक सिद्ध साधु पधारे। राजा ने अपनी समस्या साधु को बताई और उसे दूर करने सुझाव मांगा।
साधु राजा की समस्या अच्छी तरह समझ गए थे। वे बोले, “राजन! तुम्हारी चिंता की जड़ राज-पाट है। अपना राज-पाट पुत्र को देकर चिंता मुक्त हो जाओ।” 
इस पर राजा बोला, ”गुरुवर! मेरा पुत्र मात्र पांच वर्ष का है। वह अबोध बालक राज-पाट कैसे संभालेगा?”
“तो फिर ऐसा करो कि अपनी चिंता का भार तुम मुझे सौंप दो।” साधु बोले। 
राजा तैयार हो गया और उसने अपना राज-पाट साधु को सौंप दिया. इसके बाद साधु ने पूछा, “अब तुम क्या करोगे?”
राजा बोला, “सोचता हूँ कि अब कोई व्यवसाय कर लूं।”
“लेकिन उसके लिए धन की व्यवस्था कैसे करोगे? अब तो राज-पाट मेरा है। राजकोष के धन पर भी मेरा अधिकार है।”
“तो मैं कोई नौकरी कर लूंगा।” राजा ने उत्तर दिया।
“ये ठीक है, लेकिन यदि तुम्हें नौकरी ही करनी है, तो कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं। यहीं नौकरी कर लो। मैं तो साधु हूँ, मैं अपनी कुटिया में ही रहूंगा। राजमहल में ही रहकर मेरी ओर से तुम ये राज-पाट संभालना।”
राजा ने साधु की बात मान ली और साधु की नौकरी करते हुए राजपाट संभालने लगा। साधु अपनी कुटिया में चले गए।
कुछ दिन बाद साधु पुनः राजमहल आये और राजा से भेंट कर पूछा, “कहो राजन! अब तुम्हें भूख लगती है या नहीं और तुम्हारी नींद का क्या हाल है?”
“गुरुवर! अब तो मैं खूब खाता हूँ और गहरी नींद सोता हूँ. पहले भी मैं राजपाट का कार्य करता था, अब भी करता हूँ. फिर ये परिवर्तन कैसे? ये मेरी समझ के बाहर है।” राजा ने अपनी स्थिति बताते हुए प्रश्न भी पूछ लिया।
साधु मुस्कुराते हुए बोले, “राजन! पहले तुमने काम को बोझ बना लिया था और उस बोझ को हर समय अपने मानस-पटल पर ढोया करते थे। किंतु राजपाट मुझे सौंपने के उपरांत तुम समस्त कार्य अपना कर्तव्य समझकर करते हो, इसलिए चिंतामुक्त हो।”

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जीवन में जो भी कार्य करें, अपना कर्त्तव्य समझकर करें, न कि बोझ समझकर। अगर हम काम को बोझ समझ लेंगे तो निश्चित रूप से उससे दूर होते चले जाएंगे। यही चिंता से दूर रहने का तरीका है।

 

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