Life Management: महामारी से बचने सभी ने कुएं में दूध डाला, लेकिन दूसरे दिन उसमें सिर्फ पानी था…ऐसा क्यों हुआ?

जब बात सामूहिक प्रयास की आती है तो कुछ लोग अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाते, उन्हें लगता है कि उनके कुछ करने या न करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बाकी के लोग तो अपना काम करेंगे ही।

 

Asianet News Hindi | Published : Feb 25, 2022 5:57 AM IST

उज्जैन. कुछ लोग दूसरों के प्रयासों का फायदा पाना चाहते हैं। लेकिन कई बार ऐसा करना भारी पड़ जाता है। क्योंकि सामूहिक प्रयास में कमी के चलते कई बार हाथ आई जीत हार में बदल जाती है। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है अज्ञानता के चलते हर आदमी को अपना काम पूरी ईमानदारी से करना चाहिए तभी सफलता मिलती है।

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जब महामारी के चलते लोग मरने लगे
एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारों ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि “हे राजा तुम्हारी राजधानी के बीचो-बीच जो पुराना सूखा कुंआ है अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक घर से एक-एक बाल्टी दूध उस कुएं में डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और लोगों का मरना बन्द हो जायेगा।”
राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है। अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे अगर मैं अकेली एक बाल्टी पानी डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। 
इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया। अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुंए के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है। उसमें दूध की एक बूंद भी नहीं थी।
राजा समझ गया कि इसी कारण से महामारी दूर नहीं हुई और लोग अभी भी मर रहे हैं। दरअसल ऐसा इसलिये हुआ कि जो विचार उस बुढ़िया के मन में आया था वही विचार पूरे राज्य के लोगों के मन में आ गया और किसी ने भी कुंए में दूध नहीं डाला।

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लाइफ मैनेजमेंट
जब भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे लोगों को मिल कर करना होता है तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा और हमारी इसी सोच की वजह से स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं। अगर हम अपने हिस्से की जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभाएं तो परिस्थितियां बदल सकती हैं।

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