हर इंसान यही सोचता है कि अगर उसे जीवन में आगे बढ़ना है तो दूसरों को हराया या पीछे छोड़ना जरूरी है, जबकि ये सोच पूरी तरह से गलत है। कई बार हम दूसरों को पीछे करने के चक्कर खुद भी पीछे ही रह जाते हैं।
उज्जैन. कौन व्यक्ति क्या कर रहा है या कितना सफल हो चुका है, ये देखे बिना मेहनत और ईमानदारी से अपना काम करते रहिए। तभी आप भी सफल हो पाएंगे। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है कि दूसरों को हराकर हम कभी जीत नहीं सकते।
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प्रोफेसर ने स्टूडेंट्स के साथ खेला रोचक गेम
किसी कॉलेज में मनोविज्ञान के एक प्रोफेसर थे। उनका पढ़ाने का तरीका बहुत ही अलग था। इसलिए स्टूडेंट भी उनकी क्लास मिस नहीं करते थे। एक दिन जब प्रोफेसर क्लास में आए तो उनके पास बहुत सारे रंग-बिरंगे गुब्बारे थे।
प्रोफेसर ने सभी स्टूडेंट्स को वो गुब्बारे बांट दिए और कहा “ इन गुब्बारों को फूलाओ।” जब स्टूडेंट्स ने अपने-अपने गुब्बारे फुला लिए तो प्रोफेसर ने कहा कि “गुब्बारों को धागे से इस तरह बांध दो कि उनकी हवा न निकल पाए।”
स्टूडेंट्स ने ऐसा ही किया। इसके बाद प्रोफेसर ने सभी स्टूडेंट्स को एक-एक पिन दी और कहा कि “यह एक आसान गेम है, आप सभी के पास अपना एक गुब्बारा और एक पिन है। 10 मिनिट के बाद जिसका भी गुब्बारा सही-सलामत बचेगा, वही इस गेम का विजेता माना जाएगा।”
गेम का समय शुरू होते ही सभी लोग एक-दूसरे के गुब्बारों में पिन चुभाने लगे। जब गेम का समय समाप्त हुआ तो किसी के पास भी फूला हुआ गुब्बार नहीं बचा था। यानी कोई भी उस गेम का विजेता नहीं बन पाया था।
इसके बाद प्रोफेसर ने स्टूडेंट्स से कहा कि “आपने शायद मेरी बात ध्यान से नहीं सुनी। मैंने सिर्फ ये कहा था कि गेम खत्म होने तक जिसके पास गुब्बारा बचा रहा, वही इस गेम का विजेता होगा। लेकिन मैंने ये नहीं कहा था कि आप दूसरों के गुब्बारों को पिन से फोड़ डालें।”
प्रोफेसर ने अपने स्टूडेंट्स से ये भी कहा कि “अगर आप पिन से एक-दूसरे के गुब्बारे नहीं फोड़ते तो शायद आप सभी विजेता बन सकते थे, लेकिन आपका ध्यान सिर्फ दूसरे का गुब्बारा फोड़ने पर था, इस चक्कर में आपका गुब्बारा भी फूट गया।“
प्रोफेसर ने ये भी कहा “जीतने के लिए दूसरों का नुकसान करना जरूरी नहीं है, लेकिन हमारी साइकोलॉजी ऐसे ही चलती है। हमें लगता है कि अगर हमें जीतना है तो दूसरों का नुकसान करो। जबकि सच्चाई कुछ और होती है। दूसरों को हराने में हम भी हार जाते हैं।”
स्टूडेंट प्रोफेसर की बात अच्छी तरह से समझ चुके थे।
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निष्कर्ष ये है कि…
दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर में हम खुद नीचे गिर जाते हैं। हमें लगता है कि जीतने के लिए दूसरों को हराना जरूरी है, दूसरों के खिलाफ बोलना जरूरी है। लेकिन अगर हम दूसरों के हराने की बजाए खुद जीतने का प्रयास करें तो ज्यादा सफल हो सकते हैं।
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