हर बार की तरह इस बार भी 13 जनवरी को लोहड़ी ( Lohri 2022) पर्व मनाया जाएगा। ये उत्सव मुख्य तौर पर पंजाबी, सिक्ख और सिंधी परिवारों में मनाया जाता है। इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य मिलना-मिलाना और खुशियां बांटना है।
उज्जैन. लोहड़ी की शाम को लोग एक स्थान पर इकट्ठे होते हैं और आग जलाकर उसके आस-पास नाचते-गाते हैं, साथ ही पवित्र अग्नि में तिल, मक्का आदि चीजें भी डालते हैं। इस मौके पर खास तरह का नृत्य भी किया जाता है। इसे भांगड़ा (Bhangra) और गिद्दा (Gidda) कहते हैं। ये पंजाबियों की पारंपरिक नृत्य शैली है। इसके बिना लोहड़ी का पर्व अधूरा ही लगता है। रात को जब सब लोग भांगड़ा और गिद्दा नृत्य करते हैं ये दृश्य देखते ही बनता है। आगे जानिए इन नृत्य शैलियों से जुड़ी खास बातें…
ये हैं भांगड़ा नृत्य से जुड़ी खास बातें…
भांगड़ा एक जीवंत लोक संगीत व लोक नृत्य है। लोहड़ी और बैसाखी के समय लोग परंपरागत रूप से ये नृत्य करते हैं। भांगड़ा के दौरान लोग पंजाबी बोली के गीत गाते हैं तथा लुंगी व पगड़ी बांधे लोगों के घेरे में एक व्यक्ति ढोल बजाता है। भांगड़ा की शुरुआत फ़सल कटाई के उत्सव के रूप में हुई, आगे चलकर यह विवाह तथा नववर्ष समारोहों का भी अंग बन गया। पिछले 30 वर्षों के दौरान भांगड़ा के लोकप्रियता में विश्व भर में वृद्धि हुई है। भांगड़ा एक जोश बढ़ाने वाला नृत्य है।
ये हैं गिद्दा नृत्य से जुड़ी खास बातें…
यह महिला प्रधान नृत्य (गायन सहित) है। इस नृत्य को अक्सर प्राचीन नृत्य माना जाता है जिसे रिंग नृत्य के रूप में जाना जाता था। महिलाएं इस नृत्य को मुख्य रूप से उत्सव या सामाजिक अवसरों पर करती हैं। नृत्य के बाद लयबद्ध ताली बजाई जाती है और पृष्ठभूमि में वृद्ध महिलाओं द्वारा एक विशिष्ट पारंपरिक लोक गीत गाया जाता है। कहा जाता है कि गिद्दा की उत्पत्ति प्राचीन रिंग नृत्य से हुई थी जो पुराने दिनों में पंजाब में प्रमुख था। गिद्दा पंजाबी स्त्रीत्व प्रदर्शन की एक पारंपरिक विधा को प्रदर्शित करता है, जैसा कि पोशाक, कोरियोग्राफी और भाषा के माध्यम से देखा जाता है। पंजाब की संस्कृति के प्रमुख अभिव्यक्तियों के रूप में इन्हें प्रचारित किया गया। परंपरागत रूप से महिलाएं चमकीले रंगों में सलवार कमीज़ और आभूषण पहनती हैं। बालों में दो चोटियाँ और लोक आभूषणों में सजकर और माथे पर टीका लगाकर पोशाक पूरी की जाती है।
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