Lohri 2022: क्यों मनाते हैं लोहड़ी पर्व? देवी सती और भगवान श्रीकृष्ण की कथाएं जुड़ी हैं इस उत्सव से

इस बार लोहड़ी पर्व (Lohri 2022) 13 जनवरी, गुरुवार को मनाया जाएगा। मान्यताओं के अनुसार लोहड़ी मुख्य रूप से सूर्य और अग्नि देव को समर्पित है। लोहड़ी की पवित्र अग्नि में नई फसलों को समर्पित करने का भी विधान है। ये एक तरह से प्रकृति की उपासना और आभार प्रकट करने का पर्व है।

Asianet News Hindi | Published : Jan 8, 2022 11:21 AM IST / Updated: Jan 10 2022, 03:51 PM IST

उज्जैन. लोहड़ी (Lohri 2022)  का पर्व मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाने की परंपरा है। सिख धर्म के अनुसार गुरुवार को लोहड़ी जलाकर नव विवाहित जोड़ों और शिशुओं को बधाई देकर उपहार दिए जाएंगे। सिंधी समाज में भी मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व लाल लोही के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है। लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। पंजाब के कई इलाकों मे इसे लोही या लोई भी कहा जाता है। लोहड़ी बसंत के आगमन के साथ मनाया जाता है।

मौसम की पहली फसल का त्योहार
खेत खलिहान का उत्सव वैसाखी त्योहार की तरह लोहड़ी का सबंध भी फसल और मौसम से है। इस दिन से पंजाब में मूली और गन्ने की फसल बोई जाती है। लोहड़ी का आधुनिक रूप आधुनिकता के चलते लोहड़ी मनाने का तरीका बदल गया है। अब लोहड़ी में पारंपरिक पहनावे और पकवानों की जगह आधुनिक पहनावे और पकवानों को शामिल कर लिया गया है।

माता सती की याद में मनाया जाता है ये पर्व
माता सती भगवान शिव की पत्नी थी। एक बार माता सती के पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया, उन्होंने इस यज्ञ में भगवान शिव को नही बुलाया। फिर भी देवी सती बिना बुलाए उस यज्ञ में पहुंच गई। जब उन्होंने वहां अपने पति भगवान शिव का अपमान होते देखा तो यज्ञकुंड में कूदकर स्वयं की आहुति दे दी। देवी सती की याद में ही लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है।

श्रीकृष्ण ने किया था राक्षसी का वध
एक मान्यता के अनुसार द्वापरयुग में जब सभी लोग मकर संक्रांति का पर्व मनाने में व्यस्त थे। तब बालकृष्ण को मारने के लिए कंस ने लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल भेजा, जिसे बालकृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था। लोहिता नामक राक्षसी के नाम पर ही लोहड़ी उत्सव का नाम रखा। उसी घटना को याद करते हुए लोहड़ी पर्व मनाया जाता है।


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