16 फरवरी तक रहेगा माघ मास, इस महीने गंगाजल में निवास करते हैं भगवान विष्णु, जानिए खास बातें

हिंदू पंचांग का 11वां महीना यानी माघ मास 18 जनवरी, मंगलवार से शुरू हो गया है। जो कि 16 फरवरी, बुधवार तक रहेगा। इस महीने में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने और नदी में नहाने का महत्व बताया गया है।

Asianet News Hindi | Published : Jan 21, 2022 5:10 AM IST

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के जानकारों का कहना है कि माघ महीने में गंगा का नाम लेकर नहाने से गंगा स्नान का फल मिलता है। इस महीने में प्रयाग, काशी, नैमिषारण्य, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार या अन्य पवित्र तीर्थों और नदियों में स्नान का बहुत महत्व है। और भी कई परंपराएं इस मास से जुड़ी हुई हैं, इनमें संगम के तट पर 1 महीने तक किया जाने वाल कल्पवास भी शामिल है।

इस तरह मिलता है पुण्य
धार्मिक आस्था है कि माघ महीने में सूर्योदय से पहले गंगा में स्नान के बाद पूजा करनी चाहिए और सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए। अगर गंगा स्नान के लिए जाना संभव न हो तो घर में नहाने के पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाकर भी कर सकते हैं। इसके बाद पूजा-पाठ करके साधु-संतों और जरूरमंतों को दान देना चाहिए। ऐसा करने से जाने-अनजाने में हुए पापों से मुक्ति मिलती है। इससे हमारे भाग्य के द्वार खुलते हैं।

क्यों करते हैं गंगा स्नान?
पौराणिक मान्यता है कि माघ महीने के दौरान गंगाजल में भगवान विष्णु का कुछ अंश रहता है। वैसे तो सालभर में किसी भी दिन और तिथि में गंगा स्नान करना शुभ माना जाता है। लेकिन माघ महीने में जब भगवान विष्णु का अंश इस पवित्र जल में होता है तो स्नान का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है।

माघ मास का महत्व
- माघ मास में महत्त्वपूर्ण व्रत किए जाते हैं जैसे तिल चतुर्थी, रथसप्तमी और भीष्माष्टमी।
- माघ महीने के कृष्णपक्ष की द्वादशी को यम ने तिल का निर्माण किया और दशरथ ने उन्हें पृथ्वी पर लाकर खेतों में बोया। देवगण ने भगवान विष्णु को तिलों का स्वामी बनाया। इसलिए इस दिन उपवास रखकर तिलों से भगवान की पूजा की जाती है और तिलों का दान कर, तिल खाए जाते हैं।
- माघ शुक्ल चतुर्थी को उमा चतुर्थी कहा जाता है। इस दिन कई तरह के फूलों से देवी उमा की पूजा की जाती है। कई जगह उनको फूल के साथ गुड़ और नमक भी चढ़ाया जाता है।
- माघ महीने के शुक्लपक्ष की पंचमी को वसंत पंचमी पर्व पर देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।
- माघ मास के शुक्लपक्ष में सप्तमी व्रत का अनुष्ठान किया जाता है। इस व्रत में अरुणोदय काल में सिर पर सात बैर के पत्ते और सात आंकड़े के पत्ते रखकर पवित्र नदी में स्नान किया जाता है और सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। ऐसा करने से रोग खत्म हो जाते हैं।

 

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