कुरुक्षेत्र (Kurukshetra) में पांडवों (Pandavas) और कौरवों (Kauravas) के बीच 18 दिन तक भीषण युद्ध हुआ। इस दौरान कई करोड़ योद्धा मारे गए। इसे अब तक का सबसे भीषण युद्ध माना जाता है। इस युद्ध में देश-विदेश के अनेक राजाओं ने अपनी सेना सहित भाग लिया था।
उज्जैन. महाभारत (Mahabharata) के युद्ध में कुल 18 अक्षौहिणी सेना थी, जिसमें से 11 अक्षौहिणी सेना कौरवों के पास थी और 7 अक्षौहिणी सेना पांडवों के पास। एक अक्षौहिणी सेना में कितने सैनिक होते हैं, इसके बारे में भी महाभारत (Mahabharata) में बताया गया है। अब प्रश्न ये उठता है कि 18 दिनों तक चले इस युद्ध में सैनिकों के लिए भोजन की व्यवस्था किसने की। इस संबंध में एक कथा प्रचलित है जो इस प्रकार है…
उडुपी नरेश ने श्रीकृष्ण को दिया प्रस्ताव
- जिस समय कौरवों और पांडवों में युद्ध होने वाला था, उस समय दोनों पक्ष अपने-अपने पक्ष में राजाओं को बुलाने लगे। तब उडुपी के राजा भी अपनी सेना लेकर कुरुक्षेत्र में आए। कौरव और पांडव के प्रतिनिधि उडुपी नरेश को अपनी अपनी ओर से युद्ध लड़ने के लिए मनाने लगे।
- दोनों पक्षों की बातें सुनकर उडुपी नरेश तय नहीं कर पाए कि वह किसकी ओर से युद्ध लड़ें और उन्हें वहां मौजूद आर्यावर्त की सेना के भोजन की चिंता सताने लगी। उडुपी नरेश पांडवों के शिविर में पहुंचे और श्रीकृष्ण से मिले।
- उडुपी नरेश ने श्रीकृष्ण से कहा कि भाइयों के बीच हो रहे इस युद्ध के वह समर्थक नहीं हैं लेकिन अब इसे टाला नहीं जा सकता है, लिहाजा वह इसमें वह शस्त्रों के माध्यम से भाग नहीं लेना चाहते हैं। लेकिन, वह इस महायुद्ध में शामिल जरूर होना चाहते हैं।
- श्रीकृष्णा उडुपी नरेश का प्रयोजन समझ गए और उनसे पूछा कि आप क्या चाहते हैं? इस पर उडुपी नरेश ने दोनों ओर के सैनिकों के भोजन का प्रबंध करने का प्रस्ताव रखा। इस पर श्रीकृष्ण मान गए और उडुपी नरेश ने अपनी सेना के साथ बिना शस्त्रों के युद्ध में भाग लिया।
- उडुपी नरेश ने दोनों ओर के सैनिकों के लिए 18 दिन तक रोजाना भोजन उपलब्ध कराया। युधिष्ठिर ने राजतिलक समारोह के दौरान उडुपी नरेश की प्रशंसा करते हुए उन्हें बिना शस्त्र के युद्ध लड़ने वाले राजा के नाम से सुशोभित किया।