Mahavir Jayanti 2022: कौन थे भगवान महावीर, क्यों मनाते हैं इनकी जयंती? जानिए इनसे जुड़ी खास बातें

जैन धर्म के इतिहास में अनेक तीर्थंकरों का वर्णन मिलता है। इसी क्रम में वर्धमान महावीर (Lord Mahavir) जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान श्रीआदिनाथ (Lord Adinath) की परंपरा में चौबीसवें तीर्थंकर थे। जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि पर इनका जन्म दिवस महावीर जयंती (Mahavir Jayanti 2022) के रूप में मनाया जाता है।
 

Manish Meharele | Published : Apr 13, 2022 6:12 AM IST / Updated: Apr 13 2022, 12:37 PM IST

उज्जैन. इस बार महावीर जयंती 14 अप्रैल, गुरुवार को है। इस मौके पर जैन मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते हैं। प्रभात फेरी व शोभायात्रा भी निकाली जाती है। जैन धर्म के अनुसार महावीर स्वामी एक क्षत्रिय राजकुमार थे। इन्होंने जैन धर्म की शिक्षाओं को आत्मसात कर इसे आगे बढ़ाने का कार्य किया। महावीर स्वामी (Mahavir Swami) के उपदेश मानव जीवन के कल्याण का कार्य करते हैं। आगे जानिए महावीर स्वामी से जुड़ी खास बातें…

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जन्म से क्षत्रिय थे महावीर
- जैन धर्म के अनुसार, महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। यह लिच्छवी कुल के राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे। इन्होंने तपस्या द्वारा अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त की, इसीलिए इनको महावीर की उपाधि दी गई। 
- महावीर स्वामी ने ही अपने उपदेशों के माध्यम से जियो और जीने दो का संदेश जन-जन तक पहुंचाया। उनकी शिक्षाओं में मुख्य बातें थी कि सत्य का पालन करो, प्राणियों पर दया करो और अहिंसा को अपनाओ।
- इसके अलावा महावीर स्वामी ने पांच महाव्रत, पांच अणुव्रत, पांच समिति और छ: आवश्यक नियमों के बारे में भी लोगों को बताया। यही आगे जाकर जैन धर्म के प्रमुख आधार हुए।
- मान्यता के अनुसार, भगवान महावीर स्वामी को दीपावली के दिन ही मोक्ष प्राप्ति हुई थी। इसके अगले दिन ही जैन धर्म के अनुयायी नया साल मनाते हैं। इसे वीर निर्वाण संवत कहते हैं।

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महावीर स्वामी ने दिया लोगों को माफ करने का संदेश 
एक बार महावीर स्वामी वन में तपस्या कर रहे थे। जब कुछ लोगों ने उन्हें देखा तो महावीर स्वामी को इस अवस्था में देखकर उनके साथ मजाक करने लगे। लेकिन स्वामी अपनी तपस्या में मग्न रहे। उन्होंने जब ये बात जाकर गांव वालों को बताई तो सभी लोग उन्हें देखने जंगल में आए। कुछ लोगों ने महावीर के बारे में सुन रखा था। जब स्वामीजी ने आंखें खोली तो उन लोगों को अपनी करनी पर पछतावा हुआ और अपनी गलती की माफी मांगने लगे। भगवान महावीर ने सभी की बातें शांति से सुनी और कहा कि “ ये सभी लोग मेरे अपने ही हैं। जब बच्चे नासमझ होते हैं तो अपने माता-पिता का मुंह नोचते हैं, मारते हैं। लेकिन परेशान होकर माता-पिता बच्चों से नाराज नहीं होते हैं। मैं भी इन लोगों से नाराज नहीं हूं।”

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