Milad-un-Nabi 2022: मिलाद-उन-नबी कब, क्यों इतना खास है ये पर्व? जानें इतिहास और महत्व

Milad-un-Nabi 2022: इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, साल के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल की 12 तारीख को मिलाद-उन-नबी का त्योहार मनाया जाता है। इस बार ये जश्न 9 अक्टूबर, रविवार को मनाया जाएगा। 
 

Manish Meharele | Published : Oct 7, 2022 9:19 AM IST / Updated: Oct 07 2022, 02:50 PM IST

उज्जैन. अन्य धर्मों की तरह इस्लाम में भी कई व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं। मिलाद-उन-नबी भी उनमें से एक है। ये त्योहार रबी-उल-अव्वल महीने की 12 तारीख को मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 9 अक्टूबर, रविवार को मनाया जाएगा। इसे ईदे मिलाद और बारावफात के नाम से भी जाना जाता है। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन पैगंबर हजरत मोहम्मद (Prophet Hazrat Muhammad) का जन्म भी हुआ था और मृत्यु भी। दोनों ही कारणों से ये दिन मुस्लिमों के लिए बहुत खास है।

क्या है मिलाद-उन नबी और बारावफात का अर्थ?
पैगम्बर हजरत मोहम्मद पूरी दुनिया में बसे मुसलमानों के लिए श्रद्धा का केंद्र हैं। उनके जन्म और मृत्यु का दिन एक ही होने से ये बहुत खास माना जाता है। मिलाद उन नबी इसीलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन नबी यानी अल्लाह के पैगंबर का जन्म हुआ था और बारा का अर्थ है बारह और वफात यानी इंतकाल। यानी इन दोनों ही नामों का संबंध पैगम्बर हजरत मोहम्मद से है। इस दिन जुलूस निकालकर मोहम्मद साहब की बातों को याद किया जाता है और उन पर अमल करने का अहद करते हैं।

आखिरी पैगंबर थे हजरत मुहम्मद
इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म अरब के मक्का शहर में जन्म हुआ था। उनकी माता का नाम अमीना बीबी और पिता का नाम अब्दुल्लाह था। उन्होंने 25 साल की उम्र में एक विधवा स्त्री से विवाह किया, जिनका नाम खदीजा था। जब हजरत मुहम्मद को ज्ञान प्राप्त हुआ तो उन्होंने दुनिया को इस्लाम की पवित्र किताब क़ुरान की शिक्षाओं का उपदेश दिया। उनका उपदेश था कि मानवता को मानने वाला ही महान होता है।

ऐसे मनाते हैं ये पर्व?
पैगंबर मोहम्मद साहब इस्लाम धर्म के संस्थापक हैं। इसलिए इनका जन्म दिवस होने के चलते ये पर्व बहुत खास माना जाता है। इस दिन विशाल जुलूस निकाले जाते हैं। दीनी ( धार्मिक) महफिलों का आयोजन किया जाता है। मुस्लिम समाज के लोग ज्यादा से ज्यादा वक्त मस्जिद में नमाज अदा करते हैं और कुरआन की तिलावत करते हैं। जरूरतमंद लोगों को इस दिन दान किया जाता है। माना जाता है कि ईद मिलाद उन-नबी पर दान और जकात करने से अल्लाह खुश होते हैं।

नबी मोहम्मद सल्ललाहो अलैय ही वा सल्लम की हदीसें
1.
तुम में सबसे बेहतर इंसान वो है जिसके अख़लाक़ ( आचरण ) अच्छे हो
2. बुज़ुर्गों की ताज़ीम (आदर) करो, नरमी से पेश आओ, यही आपकी बख़्शीश (मोक्ष) का रास्ता होंगे।
3. तक़लीफ़ देनेवाले से भी बदले की भावना ना रखो, जबकि तुम बदला लेने की ताक़त रखते हो फिर भी मुआफ़ करना सिखो।
4. औरतों और ख़ादिमो (सेवकों ) पर हाथ उठाने से परहेज़ करो।
5. मज़दूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मज़दूरी अदा करो।
6. पानी ज़ाया ना करो अगर आप नदी किनारे हो तब भी।
7. किसी चिड़िया, परिंदे या जानवर पर ना हक़ ज़ुल्म ना करो।
8. तुम में सबसे बुद्धिमान वो है जो मौत को याद करे और गुनाहों से बचता रहे।
9. जिस जगह रहो उसके वफ़ादार बनकर रहो ज़मीन पर फ़साद पैदा ना करो।
10. बच्चों के लिए माँ बाप का सबसे बड़ा तोहफ़ा अच्छी तालीम है।
11. अपने भाइयों से मुस्कुरा कर मिलना भी नेकी है
12. बदमिज़ाजी काम को इस तरह से ख़राब कर देती है जैसे सिरका शहद को।
13. अमानत में ख़यानत ना करो।
14. ख़ुदा के आगे मरतबे में कम वो लोग होंगे जिन्हें उनकी बदज़ुबानी (कटुवाणी) के डर से लोगों ने छोड़ दिया।
15. बेवाओं और मिस्कीनों ( बिना माँ-बाप के ) बच्चों के लिए मदद करना ख़ुदा की राह में जिहाद है और उससे भी बेहतर है जो दिन रात इबादत करता है।

 

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