Nagpanchami 2022: खुद औरंगजेब आया था इस नाग मंदिर को तोड़ने, जैसे ही उठाई तलवार हो गया बेहोश...फिर क्या हुआ?

हमारे देश में अनेक प्राचीन नाग मंदिर हैं, इन सभी से अलग-अलग मान्यताएं जुड़ी हैं। ऐसा ही एक मंदिर प्रयागराज में है। इसे नागवासुकि मंदिर (Nagvasuki Temple Prayagraj) कहा जाता है। सावन मास में रोज यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है।

Manish Meharele | Published : Aug 2, 2022 5:47 AM IST / Updated: Aug 02 2022, 01:32 PM IST

उज्जैन. प्रयागराज स्थित नागवासुकि मंदिर से जुड़ी एक मान्यता ये भी है इस मंदिर में स्थिति देव प्रतिमा के दर्शन मात्र से ही पापों का नाश हो जाता है और कालसर्प दोष के अशुभ प्रभाव से भी मुक्ति मिल जाती है। नागपंचमी (Nagpanchami 2022) पर तो यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है। इस बार 2 अगस्त, मंगलवार को नागपंचमी है। इस मौके पर यहां विशेष आयोजन व पूजन भी किया जाता है। दूर-दूर से भक्त यहां दर्शन की अभिलाषा से आते हैं। आगे जानिए इस मंदिर से जुड़ी खास बातें…

वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है ये मंदिर 
इस मंदिर की वास्तुकला अपने आप में बहुत अनूठी और विशेष है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यहां स्थित नागवासुकि की प्रतिमा है। संभवत: ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां नागवासुकि भगवान की आदमकद प्रतिमा है। मंदिर के पूर्वी दरवाजे की ओर शंख बजाते हुए दो कीचक चित्रित हैं, इन दोनों के मध्य में देवी लक्ष्मी के प्रतीक कमल दो हाथियों के साथ दिखाई देते हैं। नागवासुकि प्रतिमा की कारीगारी भी देखते ही बनती है। 

नासिक के मंदिर से जुड़ा है इसका कनेक्शन
प्रयागराज के इस प्रसिद्ध नागवासुकि मंदिर की परंपरा नासिक की गोदावरी तट पर स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ से जुड़ी मानी जाती है। उल्लेखनीय है कि असम के गुवाहाटी में नवग्रह-मंदिर ब्रह्मपुत्र के उत्तर तट पर स्थित है। वैसे ही प्रयागराज में नागवासुकि मंदिर भी गंगा के तट पर स्थित है। नागवासुकि का मंदिर कालसर्प दोष शमन के लिए भी प्रसिद्ध है। वैसे तो देश नागदेवता के कई प्रसिद्ध मंदिर है, लेकिन कालसर्प दोष वाली मान्यता सिर्फ इसी स्थान से जुड़ी है।

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औरंगजेब खुद आया था तोड़ने
प्रयागराज स्थित इस नागमंदिर के बारे में कहा जाता है कि मुगलकाल के दौरान इस मंदिर को तोड़ने का प्रयास किया लेकिन सैनिक जब इस काम में सफल नहीं हुए तो खुद औरंगजेब इस मंदिर को तोड़ने आया था। औरंगजेब ने जैसे ही नागवासुकी की मूर्ति पर वार किया, स्वयं नागराज दिव्य स्वरूप में प्रकट हो गए। उनके भयंकर स्वरूप को देखकर औरंगजेब कांपने लगा और डर कर बेहोश हो गया। उसके बाद औरंगजेब ने दोबारा इस मंदिर को तोड़ने का प्रयास नहीं किया।

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