ओणम आज: ये है दक्षिण भारत का प्रमुख पर्व, जानिए क्या है इससे जुड़ी मान्यता और परंपरा?

भारत विविधताओं का देश है। यहां हर दिन किसी धर्म, जाति या समाज विशेष का त्योहार मनाया जाता है। भारत में मनाए जाने वाले त्योहार अनेकता में एकता का संदेश देते हैं। ऐसा ही एक त्योहार है ओणम। यह मुख्य रूप से केरल में मनाया जाता है। इस बार यह त्योहार 31 अगस्त, सोमवार को है।

Asianet News Hindi | Published : Aug 31, 2020 3:25 AM IST

उज्जैन. ऐसा ही एक त्योहार है ओणम। यह मुख्य रूप से केरल में मनाया जाता है। इस बार यह त्योहार 31 अगस्त, सोमवार को है।
ओणम का त्योहार फसलों की कटाई से संबंधित हैं। मान्यता यह भी है कि इस दिन राजा महाबली अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए पाताल लोक से धरती पर आते हैं। ओणम के दिन महिलाओं द्वारा आकर्षक ओणमपुक्कलम (फूलों की रंगोली) बनाई जाती है और केरल की प्रसिद्ध आडाप्रधावन (खीर) का वितरण किया जाता है। ओणम के उपलक्ष्य में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा खेल-कूद प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है।
इन प्रतियोगिताओं में लोकनृत्य, शेर नृत्य, कुचीपुड़ी, ओडि़सी, कथक नृत्य आदि प्रतियोगिताएं प्रमुख हैं। इस दिन सहभोज का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें विशेष पकवान बनाए जाते हैं। केरल ही नहीं दुनिया भर में जहां भी मलयाली परिवार रहते हैं, वे ओणम का त्योहार मनाकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं। अगर कहा जाए कि ओणम अनेकता में एकता का त्योहार है अतिशयोक्ति नहीं होगी।

इसलिए पृथ्वी पर आते हैं राजा बलि
पुरातन समय में पृथ्वी के दक्षिण क्षेत्र में बलि नामक राजा राज्य करता था। वह भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद का पौत्र था। वह राक्षसों का राजा होने के कारण देवताओं से बैर रखता था। स्वर्ग पर अधिकार करने के उद्देश्य से एक बार बलि यज्ञ कर रहा था, तब देवताओं की सहायता करने के लिए भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में गए और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी।
राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना कर दिया, लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया। भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा।
बलि के सिर पर पग रखने से वह सुतल लोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे सुतल लोक का स्वामी भी बना दिया। साथ ही भगवान ने उसे यह भी वरदान दिया कि वह अपनी प्रजा को वर्ष में एक बार अवश्य मिल सकेगा। मान्यता है कि इसी दिन राजा बलि अपनी प्रजा का हाल-चाल जानने पृथ्वी पर आते हैं। राजा बलि के पृथ्वी पर आने की खुशी में ही ओणम का त्योहार मनाया जाता है।

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