सावन: भगवान शिव के श्रेष्ठ अवतार हैं हनुमान, जानें कैसे हुआ इनका जन्म और किस देवता ने उन्हें कौन-सी शक्ति दी थी?

त्रेतायुग में भगवान श्रीराम की सहायता करने और दुष्टों का नाश करने के लिए भगवान शिव ने वानर जाति में हनुमान के रूप में अवतार लिया था।

Asianet News Hindi | Published : Aug 15, 2019 7:45 AM IST

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव अनेक अवतार लेकर भक्तों की रक्षा की है व दुष्टों का नाश किया है। भगवान शिव के इन अवतारों में पवनपुत्र हनुमान को श्रेष्ठ अवतार कहा जाए तो गलत नहीं होगा। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम की सहायता करने और दुष्टों का नाश करने के लिए भगवान शिव ने वानर जाति में हनुमान के रूप में अवतार लिया था। सावन के पवित्र मास में हम आपको भगवान शिव के सबसे श्रेष्ठ अवतार हनुमान के बारे में बता रहे हैं।

ऐसे हुआ था हनुमानजी का जन्म
शिवपुराण के अनुसार, देवताओं और दानवों को अमृत बांटते हुए विष्णु के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना वीर्यपात कर दिया। सप्त ऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर लिया। समय आने पर सप्त ऋषियों ने भगवान शिव के वीर्य को वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से गर्भ में स्थापित कर दिया, जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्रीहनुमानजी उत्पन्न हुए।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, बाल्यकाल में जब हनुमान सूर्यदेव को फल समझकर खाने को दौड़े तो घबराकर देवराज इंद्र ने हनुमानजी पर वज्र का वार किया। वज्र के प्रहार से हनुमान निस्तेज हो गए। यह देखकर वायुदेव बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने समस्त संसार में वायु का प्रवाह रोक दिया। संसार में हाहाकार मच गया। तब परमपिता ब्रह्मा ने हनुमान को स्पर्श कर पुन: चैतन्य किया। उस समय सभी देवताओं ने हनुमानजी को वरदान दिए। इन वरदानों से ही हनुमानजी परम शक्तिशाली बन गए।

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देवताओं ने ये वरदान दिए थे हनुमानजी को
1. भगवान सूर्य ने हनुमानजी को अपने तेज का सौवां भाग देते हुए कहा कि जब इसमें शास्त्र अध्ययन करने की शक्ति आ जाएगी, तब मैं ही इसे शास्त्रों का ज्ञान दूंगा, जिससे यह अच्छा वक्ता होगा और शास्त्रज्ञान में इसकी समानता करने वाला कोई नहीं होगा।
2. धर्मराज यम ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह मेरे दण्ड से अवध्य और निरोग होगा।
3. कुबेर ने वरदान दिया कि इस बालक को युद्ध में कभी विषाद नहीं होगा तथा मेरी गदा संग्राम में भी इसका वध न कर सकेगी।
4. भगवान शंकर ने यह वरदान दिया कि यह मेरे और मेरे शस्त्रों द्वारा भी अवध्य रहेगा।
5. देव शिल्पी विश्वकर्मा ने वरदान दिया कि मेरे बनाए हुए जितने भी शस्त्र हैं, उनसे यह अवध्य रहेगा और चिंरजीवी होगा।
6. देवराज इंद्र ने हनुमानजी को यह वरदान दिया कि यह बालक आज से मेरे वज्र द्वारा भी अवध्य रहेगा।
7. जलदेवता वरुण ने यह वरदान दिया कि दस लाख वर्ष की आयु हो जाने पर भी मेरे पाश और जल से इस बालक की मृत्यु नहीं होगी।
8. परमपिता ब्रह्मा ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह बालक दीर्घायु, महात्मा और सभी प्रकार के ब्रह्दण्डों से अवध्य होगा। युद्ध में कोई भी इसे जीत नहीं पाएगा। यह इच्छा अनुसार रूप धारण कर सकेगा, जहां चाहेगा जा सकेगा। इसकी गति इसकी इच्छा के अनुसार तीव्र या मंद हो जाएगी।

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