Shani Rashi Parivartan 2023: इस जगह गिरकर घायल हुए थे शनिदेव, आज होती है पत्नियों के साथ पूजा

Shani Rashi Parivartan 2023: शनि को ज्योतिष शास्त्र में क्रूर ग्रह कहा गया है। ये ग्रह हर ढाई साल में राशि बदलता है। इस बार ये ग्रह 17 जनवरी को मकर से निकलकर कुंभ में प्रवेश कर चुका है। शनिदेव के कई प्रसिद्धि मंदिर भी हमारे देश में स्थित हैं।
 

उज्जैन. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब भी शनि ग्रह राशि बदलता है तो इससे सभी राशि के लोग प्रभावित होते हैं। (Shani Rashi Parivartan 2023) इस बार शनि 17 जनवरी को राशि बदलकर मकर में कुंभ में आ चुका है। शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए लोग विशेष पूजा व मंदिरों में दर्शन करने जाते हैं। देश में शनिदेव के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, इन्हीं में से एक है अक्षयपुरीश्वर मंदिर (Akshaypurishwar Temple)।  ये मंदिर तमिलनाडु (Tamil Nadu) के पेरावोरानी (Peravorani) के पास तंजावूर (Thanjavur) के विलनकुलम (Vilankulam) में  स्थित है। इस मंदिर से शनिदेव की कई मान्यताएं जुड़ी हैं। आगे जानिए क्यों खास है शनिदेव का ये मंदिर…


पत्नियों के साथ होती है यहां शनिदेव की पूजा
वैसे तो देश में शनिदेव के कई प्राचीन मंदिर हैं, लेकिन एकमात्र इसी मंदिर में शनिदेव की पूजा उनकी पत्नियों के साथ होती है। धर्म ग्रंथों में शनिदेव की पत्नियों के नाम मंदा और ज्येष्ठा बताए गए हैं। शनिदेव को यहां आदी बृहत शनेश्वर कहा जाता है। जिन लोगों का जन्म साढ़ेसाती में हुआ होता है, वे लोग विशेष रूप ये यहां दर्शन और पूजा करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से साढ़ेसाती में जन्में लोगों पर शनिदेव का कृपा बनी रहती है। इस मंदिर में 8 बार 8 वस्तुओं के साथ पूजा करके बांए से दाई ओर 8 बार परिक्रमा भी की जाती है। 

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यहीं मिला था शनिदेव को पैर ठीक होने का आशीर्वाद
इस मंदिर से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी है। उसके अनुसार, किसी समय यहां बहुत सारे बिल्व वृक्ष थे। तमिल में विलम का अर्थ बिल्व और कुलम का अर्थ झूंड होता है। यानी यहां किसी समय बहुत सारे बिल्ववृक्ष होने से इस स्थान का नाम विलमकूलम पड़ा। एक बार इन वृक्षों की जड़ों में शनिदेव का पैर उलझ गया और वो यहां गिर गए थे। ऐसा होने से उनके पैरों में चोट लग गई। तब शनिदेव ने शिवजी की तपस्या की और प्रकट हुए महादेव ने उन्हें विवाह और पैर ठीक होने का आशीर्वाद दिया। 

700 साल पुराना है मंदिर का इतिहास
शनिदेव के इस प्राचीन मंदिर का इतिहास लगभग 700 साल पुराना बताया जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण चोल राजा पराक्र पंड्यान द्वारा 1335 से 1365 के बीच करवाया गया था। इस मंदिर के प्रमुख देवता शिव हैं, जिन्हें अक्षयपुरीश्वर कहा जाता है। देवी पार्वती की पूजा यहां श्री अभिवृद्धि नायकी के रूप में की जाती है। इस मंदिर का प्रांगण काफी बड़ा है और यहां कई छोटे मंडप बने हुए हैं। मंदिर का सबसे खास हिस्सा कोटरीनुमा स्थान हैं जहां सूर्य का प्रकाश भी नहीं पहुंच पाता।



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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें। आर्टिकल पर भरोसा करके अगर आप कुछ उपाय या अन्य कोई कार्य करना चाहते हैं तो इसके लिए आप स्वतः जिम्मेदार होंगे। हम इसके लिए उत्तरदायी नहीं होंगे। 

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