Shattila Ekadashi 2022: 28 जनवरी को किया जाएगा षटतिला एकादशी व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा

हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi 2022) कहते हैं। इस बार ये एकादशी 28 जनवरी, शुक्रवार को है। हर एकादशी की तरह षटतिला एकादशी पर भी भगवान श्री विष्णु की पूजा की जाती है और उन्हें तिल का भोग लगाया जाता है।
 

Asianet News Hindi | Published : Jan 21, 2022 10:03 AM IST

उज्जैन. षटतिला एकादशी पर (Shattila Ekadashi 2022) तिल को पानी में डालकर स्नान करने और तिल का दान करने का भी विशेष महत्व बताया गया है। षटतिला एकादशी व्रत में तिल का छ: रूप में उपयोग करना उत्तम फलदाई माना जाता है। जो व्यक्ति जितने रूपों में तिल का उपयोग तथा दान करता है उसे उतने हजार वर्ष तक स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है। आगे जानिए षटतिला एकादशी की व्रत विधि व शुभ मुहूर्त…

षटतिला एकादशी शुभ मुहूर्त
षटतिला एकादशी तिथि का आरंभ 27 जनवरी, गुरुवार की रात लगभग 02.16 पर होगा। वहीं तिथि का समापन 28 जनवरी की रात 11.35 पर होगा। ऐसे में षटतिला एकादशी का व्रत 28 जनवरी को रखा जाएगा। इस तरह ये व्रत 28 जनवरी को ही रखा जाएगा। व्रत का पारण 29 जनवरी को किया जाएगा। पारण के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 07.11 से 09.20 तक रहेगा। 

इस विधि से करें षट्तिला एकादशी का व्रत
- षट्तिला एकादशी पर भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखना चाहिए। व्रत करने वालों को गंध, फूल, धूप दीप, पान सहित विष्णु भगवान की षोड्षोपचार (सोलह सामग्रियों) से पूजा करनी चाहिए।
- उड़द और तिल मिश्रित खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाना चाहिए। रात को तिल से 108 बार ऊं नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा इस मंत्र से हवन करना चाहिए। भगवान की पूजा कर इस मंत्र से अर्घ्य दें-
सुब्रह्मण्य नमस्तेस्तु महापुरुषपूर्वज।
गृहाणाध्र्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते।।
- रात को भगवान के भजन करें, अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं। इसके बाद ही स्वयं तिल युक्त भोजन करें। यह व्रत सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला है।

षटतिला व्रत का महत्व
वैसे तो सभी एकादशी व्रत को श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना गया है, लेकिन शास्त्रों में हर एकादशी का अलग महत्व बताया गया है। षटतिला एकादशी के व्रत से घर में सुख-शांति के वास होता है। व्रत रहने वाले को जीवन के सभी सुख प्राप्त होते हैं। कहा जाता है कि व्यक्ति को जितना पुण्य कन्यादान और हजारों सालों की तपस्या और स्वर्ण दान से मिलता है, उतना ही पुण्य षटतिला एकादशी का व्रत रखने से भी प्राप्त होता है। अंत में मनुष्य मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।


 

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