Shraddha Paksha 2022: किसी की मृत्यु तिथि पता न हो तो किस दिन करें उसका श्राद्ध?

Pitru Paksha 2022: धर्म ग्रंथों के अनुसार, श्राद्ध पक्ष में रोज पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण आदि करने चाहिए। इससे परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है और पितृ दोष का अशुभ प्रभाव भी कम होता है।

Manish Meharele | Published : Sep 8, 2022 9:08 AM IST / Updated: Sep 10 2022, 08:57 AM IST

उज्जैन. इस बार श्राद्ध पक्ष 10 से 25 सितंबर तक रहेगा। इस दौरान मृत्यु तिथि पर पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा आदि की जाती है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान मृत पूर्वज पितृ लोक से निकलकर पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इसलिए इस दौरान पितरों की खास पूजा का विधान बनाया गया है। अगर किसी पूर्वज की मृत्यु तिथि पता न हो तो क्या करना चाहिए, इसके संबंध में भी धर्म ग्रंथों में बताया गया है।

श्राद्ध पक्ष में तिथियों में मतभेद
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, 10 सितंबर, शनिवार को भाद्रपद मास की पूर्णिमा पर प्रौष्ठपदी श्राद्ध किया जाएगा। वहीं पंचाग भेद होने से द्वितीया और तृतीया तिथि का श्राद्ध 12 सितंबर, सोमवार को एक ही दिन में किया जाएगा। चतुर्थी तिथि का श्राद्ध 13 सितंबर को, पंचमी का श्राद्ध 14 सितंबर को, षष्ठी तिथि का श्राद्ध 15 सितंबर को किया जाएगा। 16 सितंबर को भी पूरे दिन षष्ठी तिथि रहेगी। इसलिए सप्तमी तिथि का श्राद्ध 16 सितंबर को न करते हुए 17 सितंबर को किया जाएगा।

मृत्यु तिथि पता न हो तो कैसे करें श्राद्ध?
धर्म ग्रंथों के अनुसार, श्राद्ध हमेशा मृत्यु तिथि पर ही करना चाहिए यानी अगर किसी व्यक्ति को मृत्यु सप्तमी तिथि पर हुई है तो उसका श्राद्ध इसी तिथि पर करना श्रेष्ठ रहता है। लेकिन किसी की मृत्यु तिथि याद न हो तो उसका श्राद्ध अंतिम दिन सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर करना चाहिए। इससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है। अगर किसी व्यक्ति की असमय मृत्यु हुई हो जैसे हत्या या दुर्घटना में तो उसका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि पर करना चाहिए। 

श्राद्ध की ये तिथियां हैं खास
वैसे तो श्राद्ध पक्ष के 16 दिन ही बहुत खास है, लेकिन इनमें से कुछ तिथियों को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। ये तिथियां इस प्रकार हैं-

पूर्णिमा (10 सितंबर)-  ये श्राद्ध पक्ष का प्रथम दिन होता है। इस दिन श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

पंचमी (14 सितंबर)- इसे कुंवारा पंचमी कहते हैं। जिन परिजनों की मृत्यु कुंवारेपन में हुई हो, उनका श्राद्ध इस दिन विशेष रूप से करना चाहिए।

नवमी (20 सितंबर)- इसलिए इसे मातृ नवमी कहते हैं। इस दिन परिवार की उन महिलाओं का श्राद्ध करना चाहिए, जिनकी मृत्यु विवाहित अवस्था में हुई हो।

द्वादशी (23 सितंबर)- इसे सन्यासी श्राद्ध कहा जाता है। अगर कोई पूर्वज सन्यासी होकर मृत हुआ हो तो ऐसे पूर्वजों का श्राद्ध इस दिन करना चाहिए। 

चतुर्दशी (25 सितंबर)- अगर किसी परिजन की मृत्यु घटना-दुर्घटना में हुई हो उसका श्राद्ध इस दिन जरूर करना चाहिए।

अमावस्या (26 सितंबर)-  ये श्राद्ध पक्ष की अंतिम तिथि होती है। इसे सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या कहते हैं। इस दिन श्राद्ध करने से सभी को उसका फल मिलता है।


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