श्राद्ध के लिए प्रसिद्ध है गया तीर्थ, यहां बालू के पिंड बनाकर करते हैं पिंडदान, क्या है इसका कारण?

इस बार 20 सितंबर से पितृ पक्ष (Shradh Paksha 2021) की शुरुआत हो चुकी है जो 6 अक्टूबर तक रहेगा। पितृ पक्ष में पितरों को खुश करने के लिए और उनका आर्शीवाद पाने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय करते हैं। कहा जाता है कि तर्पण और पिंडदान करने से पितरों को बल मिलता है।

उज्जैन. मान्यता है कि तर्पण और पिंडदान से पितरों को बल मिलता है, वो शक्ति प्राप्त करके परलोक जाते हैं और अपने परिवार का कल्याण करते हैं। जो मनुष्य अपने पितरों के प्रति उनकी तिथि पर अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, उन पर पितरों का आशीर्वाद बना रहता है। पितृपक्ष (Shradh Paksha 2021) में लोग बिहार के गया में तर्पण और पिंडदान (Pind daan) करते हैं। गया में बालू से पिंडदान करने की परंपरा है। ये परंपरा कैसे शुई हुई? इससे जुड़ी एक कथा है, जो इस प्रकार है…

गया में बालू से क्यों करते हैं पिंडदान (Shradh Paksha 2021)?
- गया में बालू से पिंडदान किया जाता है जिसका वाल्मीकि रामायण में भी वर्णन है। इसके मुताबिक, वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष में श्राद्ध करने के लिए गया गए थे।
- इसके बाद भगवान श्रीराम श्राद्ध के लिए कुछ सामान लेने के लिए बन में गए। इसी दौरान आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय निकल रहा है। इसी दौरान माता सीता को दशरथजी महाराज की आत्मा के दर्शन हुए।
- दशरथजी की आत्मा ने उनसे पिंडदान के लिए कहा। इसके बाद माता सीता ने फल्गू नदी, वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर दशरथजी महाराज का फल्गू नदी के किनारे पिंडदान कर दिया।
- इसके बाद दशरथजी की आत्मा प्रसन्न होकर सीताजी को आशीर्वाद देकर चली गई। मान्यता है कि तब से ही गया में बालू से पिंडदान करने की परंपरा की है। 


प्रसिद्ध है गया का विष्णुपद मंदिर
गया बिहार की सीमा से लगा फल्गु नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि यहां फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृतात्मा को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। इसलिए गया को श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान माना गया है। फल्गु नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित विष्णुपद मंदिर पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान विष्णु के पदचिन्हों पर किया गया है। यह मंदिर 30 मीटर ऊंचा है जिसमें आठ खंभे हैं। इन खंभों पर चांदी की परतें चढ़ाई हुई है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु के 40 सेंटीमीटर लंबे पांव के निशान हैं। सन 1787 में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।

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कैसे पहुंचें?
हवाई मार्ग: गया में अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा है, जो सभी प्रमुख हवाई अड्डों से जुड़ा है।
रेल मार्ग: गया जंक्शन बिहार का दूसरा बड़ा रेलवे स्टेशन है। गया से पटना, कोलकाता, पुरी, बनारस, चेन्नई, मुम्बई, नई दिल्ली, नागपुर, गुवाहाटी आदि के लिए सीधी ट्रेनें है।
सड़क मार्ग: गया राजधानी पटना और राजगीर, रांची, बनारस आदि के लिए बसें जाती हैं। गया में दो बस स्टैंड हैं। दोनों स्टैंड फल्गु नदी के तट पर स्थित है।

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