Shradh Paksha: श्राद्ध करते समय ध्यान रखें ये 10 बातें, प्रसन्न होंगे पितृ और घर में बनी रहेगी सुख-समृद्धि

आज (20 सितंबर, सोमवार) भाद्रपद मास की पूर्णिमा है। इसी तिथि से 16 दिनों तक चलने वाले श्राद्ध पक्ष (Shradh Paksha 2021) की शुरूआत होती है। इस बार श्राद्ध पक्ष 6 अक्टूबर, रविवार तक रहेगा।

Asianet News Hindi | Published : Sep 20, 2021 4:18 AM IST

उज्जैन. पितरों को श्रद्धा के साथ याद करना ही श्राद्ध कहलाता है। मान्यता है कि इन दिनों में हमारे पितर देवता चंद्र लोक से धरती पर आते हैं और अपने वशंज के घर की छत पर रहते हैं। इसलिए पितृ पक्ष में पितरों के लिए घर छत पर भोजन रखने की परंपरा है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार बहुत ज्यादा धनी होने पर भी श्राद्ध कर्म में अधिक विस्तार से नहीं करना चाहिए यानी बहुत सामान्य तरीके से श्राद्ध कर्म (Shradh Paksha 2021) करना चाहिए। श्राद्ध पक्ष से जुड़ी और भी कई बातें हमारे धर्म ग्रंथों में बताई गई हैं, जो इस प्रकार हैं…

1. श्राद्ध पक्ष में काम, क्रोध, लोभ से बचना चाहिए। जो लोग अपने माता-पिता, सास-ससुर, दामाद, भांजे-भांजी, बहन और परिवार के सदस्यों का सम्मान नहीं करते हैं और हमेशा दूसरों को ही महत्व देते हैं, उनके घर में पितर देवता अन्न ग्रहण नहीं करते हैं।
2. श्राद्ध में ब्राह्मणों को, घर आए मेहमान और भिक्षा मांगने आए जरूरतमंद व्यक्ति को उनकी इच्छा अनुसार भोजन कराना चाहिए।
3. श्राद्ध पक्ष में घर में शांति रखनी चाहिए। घर में क्लेश और शोर न करें। साथ ही, घर में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
4. पितृ शांति के लिए तर्पण का श्रेष्ठ समय संगवकाल यानी सुबह 8 से लेकर 11 बजे तक माना जाता है। इस दौरान किए गए जल से तर्पण से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
5. तर्पण के बाद बाकी श्राद्ध कर्म के लिए सबसे शुभ और फलदायी समय कुतपकाल होता है। यह समय हर तिथि पर सुबह 11.36 से दोपहर 12.24 तक होता है।
6. मान्यता है कि इस समय पितरों का मुख पश्चिम की ओर हो जाता है। इससे पितर अपने वंशजों द्वारा श्रद्धा से भोग लगाए कव्य बिना किसी कठिनाई के ग्रहण करते हैं।
7. पितरों की भक्ति से मनुष्य को पुष्टि, आयु, वीर्य और धन की प्राप्ति होती है।
8. अग्नि में हवन करने के बाद जो पितरों के निमित्त पिंडदान दिया जाता है, उसे ब्रह्मराक्षस भी दूषित नहीं करते। श्राद्ध में अग्निदेव को उपस्थित देखकर राक्षस वहां से भाग जाते हैं।
9. सबसे पहले पिता को, उनके बाद दादा को उसके बाद परदादा को पिंड देना चाहिए। यही श्राद्ध की विधि है।
10. प्रत्येक पिंड देते समय एकाग्रचित्त होकर गायत्री मंत्र का जाप तथा सोमाय पितृमते स्वाहा का उच्चारण करना चाहिए। 

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