श्राद्ध करने का पहला अधिकार पुत्र को है, अगर वो न हो तो क्या करें? जानिए क्या कहते हैं धर्म ग्रंथ

किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद किए जाने वाले संस्कार उसका पुत्र ही करता है। शास्त्रों के अनुसार, पुत्र ही पिता को पुं नामक नरक से मुक्ति दिलाता है। इसलिए उसे पुत्र कहते हैं

उज्जैन. किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद किए जाने वाले संस्कार उसका पुत्र ही करता है। शास्त्रों के अनुसार, पुत्र ही पिता को पुं नामक नरक से मुक्ति दिलाता है। इसलिए उसे पुत्र कहते हैं-

पुं नाम नरक त्रायेताति इति पुत्रः

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उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, पुत्र द्वारा पिंडदान, तर्पण आदि करने पर ही पिता की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। इसलिए पुत्र को ही श्राद्ध, पिंडदान का अधिकारी माना गया है और नरक से रक्षा करने वाले पुत्र की कामना हर मनुष्य करता है, लेकिन यदि पुत्र न हो तो उसके स्थान पर श्राद्ध, पिंडदान आदि कौन कर सकता है, इस संबंध में भी धर्म ग्रंथों में संपूर्ण जानकारी दी गई है, जो इस प्रकार है...

1. पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में संपिंडों (एक ही परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए।
2. एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है। पुत्री का पति एवं पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं। पुत्र के न होने पर पौत्र (पोता) या प्रपौत्र (पड़पोता) भी श्राद्ध कर सकते हैं।
3. पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के न होने पर विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है। पत्नी का श्राद्ध पति तभी कर सकता है, जब कोई पुत्र न हो। पुत्र, पौत्र या पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है।
4. गोद लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी है। कोई न होने पर राजा को उसके धन से श्राद्ध करने का विधान है।
 

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