इस देवी मंदिर को नारियलों से होती है 40 करोड़ की सालाना आय, कहां से आते हैं इतने नारियल?

Tarini Mata Mandir: हमारे देश में कई प्राचीन मंदिर हैं। इन मंदिरों से कुछ ऐसी परंपराएं और मान्यताएं जुड़ी हैं जो इन्हें खास बनाती हैं। ऐसा ही एक देवी मंदिर ओडिशा के केंउझर गांव में स्थित है। इसे शक्तिपीठ की मान्यता प्राप्त है। नवरात्रि में यहां कई विशेष आयोजन होते हैं।
 

Manish Meharele | Published : Jan 2, 2023 5:02 AM IST / Updated: Jan 02 2023, 10:44 AM IST

उज्जैन. देश में देवी के अनेक प्राचीन मंदिर हैं। ऐसा ही एक मंदिर ओडिशा (Odisha) के केंउझर गांव (Keonjhar village) में स्थित है। मान्यता है कि इसी स्थान पर देवी सती का स्तन गिरा था, इसिलए इसे शक्तिपीठ कहा जाता है। (Tarini Mata Temple) इस मंदिर में देवी को नारियल चढ़ाने की परंपरा है। यहां प्रतिदिन देवी को लगभग 30 हजार नारियल चढ़ाए जाते हैं। इस हिसाब से मंदिर में सालभर में लगभग 40 करोड़ मूल्य के नारियल पहुंचते हैं। इतने नारियल यहां कैसे आते हैं, ये जानना बहुत दिलचस्प है। आगे जानिए इस मंदिर से जुड़ी खास बातें…

ऐसे पहुंचते हैं यहां इतने नारियल
तारिणी माता मंदिर में जो नारियल चढ़ाएं जाते हैं, वे देश के अलग-अलग हिस्सों से भेजे जाते हैं। अगर आप झारखंड, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल या देश के किसी भी हिस्से में रहते हैं और देवी को नारियल चढ़ाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको यहां आने की जरूरत नहीं है। आपको सिर्फ उड़ीसा आने वाले ट्रक या बस के ड्राइवर को नारियल देना है, वो माता के दरबार में आपका दिया नारियल पहुंचा देगा। ये परंपरा पिछले 600 सालों से चली आ रही है। ओडिशा के 30 जिलों में नारियल के लिए बॉक्स रखवाए गए हैं। ड्राइवर इनमें नारियल डाल देते हैं और वहां से इन्हें मंदिर में भेज दिया जाता है।

रोज आते हैं 30 हजार नारियल
एक रिपोर्ट के अनुसार, मंदिर में लगभग 30 हजार नारियल देश के अलग-अलग हिस्सों से भक्तों द्वारा माता को भेजे जाते हैं। इस तरह लगभग 1 करोड़ नारियल सालभर में यहां आते हैं। इन नारियलों से ही मंदिर को लगभग साढ़े तीन करोड़ रूपए मासिक और 40 करोड़ रूपए सालना की कमाई हो जाती है। इस मंदिर में नारियल भेजने की परंपरा 14वीं शताब्दी से चली आ रही है यानी इस परंपरा को लगभग 600 साल हो चुके हैं।

ये है मंदिर से जुड़ी रोचक कथा
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, केंउझर के तत्कालीन राजा गोबिंदा भंजदेव ने मां तारिणी का ये मंदिर 1480 में बनवाया था। कांची युद्ध के दौरान राजा मां को पुरी से केंउझर ला रहे थे पर शर्त ये थी कि राजा को पीछे मुड़कर नहीं देखना था, नहीं तो माता वहीं रूक जाएगी। घटगांव के पास जंगलों में राजा को ऐसा लगा कि माता उसके पीछे नहीं आ रही, यही देखने के लिए जैसे ही वो पीछे पलटा माता उसी स्थान पर स्थित हो गई। राजा ने भी उसी स्थान पर माता का मंदिर बनवा दिया।


ये भी पढ़ें-

Makar Sankranti 2023: 20वीं सदी में 36 बार 15 जनवरी को मनाई जाएगी मकर संक्रांति, क्यों आ रहा है ये अंतर?


Hindu Tradition: जन्म के बाद क्यों जरूरी है बच्चे का मुंडन संस्कार, सिर पर क्यों लगाई जाती है हल्दी?

Yearly Rashifal 2023: ज्योतिष, टैरो और न्यूमरोलॉजी से जानें कैसा रहेगा आपके लिए साल 2023



Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें। आर्टिकल पर भरोसा करके अगर आप कुछ उपाय या अन्य कोई कार्य करना चाहते हैं तो इसके लिए आप स्वतः जिम्मेदार होंगे। हम इसके लिए उत्तरदायी नहीं होंगे। 

Share this article
click me!