ये हैं महाभारत के वो 4 पात्र, जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं

महाभारत हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। इसे पांचवां वेद भी कहा जाता है। महाभारत की कथा में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कई पात्र जुड़े हुए थे। हर किसी का अपना अलग ही महत्व था।

उज्जैन. महाभारत के कई पात्रों से तो आप जानते हैं, लेकिन आज हम आपको महाभारत के कुछ ऐसे पात्रों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बारे में बहुत कम ही लोग जानते होंगे-

1. युयुत्सु
कई लोग धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्रों का बारे में ही जानते हैं, लेकिन वास्तव में धृतराष्ट्र के सौ नहीं एक सौ एक पुत्र थे। धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम युयुत्सु था। धृतराष्ट्र को यह पुत्र एक दासी से प्राप्त हुआ था। जब गांधारी गर्भवती थी, तब धृतराष्ट्र की सेवा के लिए दासी नियुक्त की गई थी। उस दासी से ही युयुत्सु का जन्म हुआ था। धृतराष्ट्र पुत्र होने के कारण युयुत्सु भी एक कौरव था, लेकिन वह अन्य कौरवों की तरह अधर्मी और पापी नहीं था। युद्ध में युयुत्सु ने पांडवों का साथ दिया था। युद्ध समाप्त होने पर केवल यहीं एक कौरव जीवित बचा था।

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2. विकर्ण
ये धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्रों में से एक था। युधिष्ठिर जुएं में अपना सबकुछ हार गए थे। सबसे अंत में युधिष्ठिर ने द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया। द्रौपदी को हारने के बाद जब भरी सभा में दुर्योधन आदि उसका अपमान कर रहे थे। तब केवल विकर्ण ने इस अर्धम का विरोध किया था।

3. पुरोचन
पुरोचन दुर्योधन का मंत्री पांडवों की जासूसी करने में और उनके लिए बाधाएं पैदा करने में वह दुर्योधन का साथ देता था। उसी ने वारणावत में लाक्षागृह का निर्माण करवाया था। ताकि दुर्योधन वारणावत में सभी पांडवों और उनकी माता कुंती को जला कर मार सके।

4. संजय
संजय धृतराष्ट्र के सारथी थे, लेकिन वास्तव में वह धृतराष्ट्र का केवल सारथी ही नहीं बल्कि उसका सलाहकार भी था। संजय ने हमेशा ही धृतराष्ट्र को उसके हित की सलाह दी थी। महर्षि वेदव्यास ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी। ताकि वह पूरे युद्ध का साक्षात वृतान्त धृतराष्ट्र को सुना सके। संजय युद्ध समाप्त होने के बाद धृतराष्ट्र, गांधारी, कुंती आदी के साथ ही वन में चले गए थे।

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