महाराष्ट्र के इस मंदिर में है 2 हजार साल प्राचीन लक्ष्मी प्रतिमा, साल में 2 बार यहां दिखता है अद्भुत नजारा

दीपावली पर देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन प्रमुख लक्ष्मी मंदिरों में भी भक्त दर्शन करते जाते हैं। मुंबई से लगभग 400 किमी. दूर कोल्हापुर जिले में धन की देवी लक्ष्मी का एक सुंदर मंदिर है। यहां पर देवी लक्ष्मी को अम्बा जी के नाम से पुकारा जाता है।

उज्जैन. दीपावली पर देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन प्रमुख लक्ष्मी मंदिरों में भी भक्त दर्शन करते जाते हैं। मुंबई से लगभग 400 किमी. दूर कोल्हापुर जिले में धन की देवी लक्ष्मी का एक सुंदर मंदिर है। यहां पर देवी लक्ष्मी को अम्बा जी के नाम से पुकारा जाता है। कोल्हापुर का इतिहास धर्म से जुडा हुआ है और इसी वजह से ये जगह धर्म की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां पर देवी लक्ष्मी की आराधना और कोई नहीं बल्कि सूर्य की किरणें करती है। करीब 2000 साल पुराने दुनिया के सबसे प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर में रोज ही दिवाली की रौनक होती है।

साल में 2 बार दिखता है ये अद्भुत दृश्य
साल में दो बार नवंबर और जनवरी में तीन दिनों तक अस्ताचल सूर्य की किरणें गर्भगृह में महालक्ष्मी की प्रतिमा को स्पर्श करती हैं। हर साल नवंबर में 9, 10 और 11 तारीख को और इसके बाद 31 जनवरी, 1 और 2 फरवरी को। पहले दिन सूर्य किरणें महालक्ष्मी के चरणों को स्पर्श करती हैं। दूसरे दिन कमर तक आती हैं और तीसरे दिन चेहरे को आलोकित करते हुए गुजर जाती हैं। इसे किरणोत्सव कहा जाता है, जिसे देखने हजारों लोग जुटते हैं।

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भारतीय कला की मिसाल
काले पत्थरों पर कमाल की नक्काशी हजारों साल पुराने भारतीय स्थापत्य की अद्भुत मिसाल है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में महालक्ष्मी हैं, उनके दाएं-बाएं दो अलग गर्भगृहों में महाकाली और महासरस्वती के विग्रह हैं। पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति के प्रबंधक धनाजी जाधव नौ पीढ़ियों से यहां देखरेख कर रहे हैं। वे बताते हैं कि यह देवी की 51 शक्तिपीठों में से एक है। दिवाली की रात दो बजे मंदिर के शिखर पर दीया रोशन होता है, जो अगली पूर्णिमा तक नियमित रूप से जलता है।

2000 साल से ज्यादा पुरानी है देवी की प्रतिमा
महालक्ष्मी की दो फीट नौ इंच ऊंची मूर्ति 2000 साल से ज्यादा पुरानी बताई जाती है। मूर्ति में महालक्ष्मी की 4 भुजाएं हैं। इनमें महालक्ष्मी मेतलवार, गदा, ढाल आदि शस्त्र हैं। मस्तक पर शिवलिंग, नाग और पीछे शेर है। घर्षण की वजह से नुकसान न हो इसलिए चार साल पहले औरंगाबाद के पुरातत्व विभाग ने मूर्ति पर रासायनिक प्रक्रिया की है। इससे पहले 1955 में भी यह रासायनिक लेप लगाया गया था। महालक्ष्मी की पालकी सोने की है। इसमें 26 किलो सोना लगा है। हर नवरात्रि के उत्सव काल में माता जी की शोभा यात्रा कोल्हापुर शहर में निकाली जाती है।

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