भारत विविधताओं का देश हैं। यहां कई धर्मों के लोग रहते हैं। हर धर्म की अपनी मान्यताएं और परंपराए हैं। हिंदू परंपराओं की तरह अन्य धर्मों की परंपराओं के पीछे भी धार्मिक, वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक तथ्य छिपे हैं।
उज्जैन. जैन धर्म का उदय भारत में ही हुआ है। वास्तव में ये धर्म सनातन धर्म की ही एक शाखा है। जो कालांतार में अलग धर्म के रूप में विकसित हुई और आज एक वट वृक्ष बन चुकी है। जैन धर्म (Jainism) में भी अनेक परंपराओं (Traditions of Jainism) की पालन किया जाता है। इनमें से एक परंपरा ये भी है सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए यानी रात में कुछ भी खाने से बचना चाहिए। जैन धर्म की इस परंपरा के पीछे 1 नहीं 2 कारण है जो धर्म और आयुर्वेद से जुड़े हैं। आज हम आपको इसी के बारे में बता रहे हैं…
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न हो जीव हत्या
जैन धर्म में अहिंसा का पालन बड़ी ही सख्ती से किया जाता है। भूल से भी किसी जीव की हत्या और नुकसान न हो, इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। सूर्यास्त से पहले भोजन करने के पीछे एक ये भी कारण है, क्योंकि रात में सूक्ष्म जीव बड़ी मात्रा में फैल जाते हैं। ऐसे में सूर्यास्त के बाद खाना बनाने से सूक्ष्म जीव भोजन में प्रवेश कर जाते हैं। खाना खाने पर ये सभी जीव पेट में चले जाते हैं। जैन धारणा में इसे हिंसा माना गया है। इसी कारण रात के भोजन को जैन धर्म में निषेध माना गया है।
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सेहत का भी ध्यान
सूर्यास्त से पहले भोजन करने के पीछे दूसरा कारण स्वास्थ्य है। सूर्यास्त के बाद हमारी पाचन शक्ति मंद पड़ जाती है। इसलिए खाना सूर्यास्त से पहले खाने की परंपरा जैनोँ के अलावा हिंदुओं में भी है। यह भी कहा जाता है कि हमारा पाचन तंत्र कमल के समान होता है। जिसकी तुलना ब्रह्म कमल से की गई है। प्राकृतिक सिद्धांत है कि सूर्य उदय के साथ कमल खिलता है।अस्त होने के साथ बंद हो जाता है। इसी तरह पाचन तंत्र भी सूर्य की रोशनी मे खुला रहता है और अस्त होने पर बंद हो जाता है। ऐसे में यदि हम भोजन ग्रहण करें तो बंद कमल के बाहर ही सारा अन्न बिखर जाता है। वह पाचन तंत्र में समा नही पाता। इसलिए शरीर को भोजन से जो ऊर्जा मिलनी चाहिए। वह नहीं मिलती और भोजन नष्ट हो जाता है।
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