सार

महाभारत (Mahabharata) हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक है। इसे पांचवें वेद की संज्ञा भी दी गई है। इसे स्वयं भगवान श्रीगणेश ने लिखा है। इसमें कई ऐसी कथाएं भी हैं जो बहुत रोचक हैं, लेकिन बहुत कम लोग इनके बारे में जानते हैं।

उज्जैन. कुरुक्षेत्र (Kurukshetra) के मैदान में कौरवों (Kauravas) और पांडवों के (Pandavas) बीच हुए भीषण युद्ध के दौरान कई ऐसी घटनाएं घटीं जिनका वर्णन महाभारत (Mahabharata) ग्रंथ में तो मिलता है, लेकिन इसके बारे में आज तक न तो कभी बताया गया और न दिखाया गया। महाभारत के युद्ध में अर्जुन (Arjun) के सारथी भगवान श्रीकृष्ण (Shri Krishna) थे। उनके रथ के ऊपर स्वयं संकटमोचन हनुमान बैठे थे। इन दोनों के देवताओं के अलावा एक अन्य देवता भी अर्जुन का साथ दे रहे थे। आगे जानिए इस पूरे प्रसंग के बारे में …

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जब अर्जुन को रणभूमि में दिखाई दिए महादेव
कौरव और पांडवों के बीच चल रहे युद्ध के दौरान एक दिन महर्षि वेदव्यास रणभूमि में आए। अर्जुन ने उन्हें प्रणाम किया और पूछा कि ‘‘हे गुरुदेव। जब मैं अपने बाणों से शत्रु सेना को मार रहा था तो मैंने देखा कि एक अग्नि के समान तेजस्वी पुरुष मेरे आगे चल रहे हैं। उनके हाथ में जलता हुआ शूल है और वे जिस ओर भी जाते हैं मेरे शत्रुओं का नाश हो जाता है। उन्होंने ने मेरे शत्रुओं का वध किया है, लेकिन लोग समझते हैं कि ये सब मैंने किया है, लेकिन मैं तो सिर्फ उनके पीछे-पीछए चलता हूं। मुझे बताईए, वे महापुरुष कौन हैं, जो अपने हाथ से त्रिशूल कभी नहीं छोड़ते, लेकिन उनके तेज से उस एक ही त्रिशूल से हजारों शूल प्रकट होकर शत्रुओं पर गिरते हैं।”
अर्जुन की बात सुनकर महर्षि वेदव्यास ने कहा “ जिस कौरव सेना में स्वयं भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, कृपाचार्य जैसे महावीर हो, उस सेना का विनाश तो सिर्फ महादेव ही कर सकते हैं। तुम्हें जो तेजस्वी महापुरुष दिखाई देते हैं, वे कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव ही हैं। वे इस धर्म युद्ध में तुम्हारा साथ दे रहे हैं और अधर्मियों का वध कर रहे हैं। जब तुमने सिंधुराज जयद्रथ के वध की प्रतिज्ञा की थी, उस समय सपने में श्रीकृष्ण ने तुम्हें जिनका दर्शन कराया था, ये वे ही भगवान शंकर युद्ध  में तुम्हारे आगे आगे चल रहे हैं। उन्होंने ही तुम्हें वे दिव्यास्त्र प्रदान किये थे, जिनके द्वारा तुमने दानवों का संहार किया है।”
महर्षि वेदव्यास की बात सुनकर अर्जुन को भी विश्वास हो गया कि स्वयं महादेव उनके पक्ष से युद्ध रहे रहे हैं। अर्जुन ने उन्हें प्रणाम किया और पुन: युद्ध करने लगे।


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