गुजरात के वलसाड़ में है 300 साल पुराना अनोखा मंदिर, यहां होती है मछली की हड्डियों की पूजा

भारत विविधताओं का देश है। यहां कई ऐसी बातें सुनने में आती है जिस पर यकीन करना भी मुश्किल हो जाता है। भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जो बिल्कुल अलग है और अपने आप में बिल्कुल अलग हैं।

Asianet News Hindi | Published : Mar 4, 2022 9:16 AM IST

उज्जैन. गुजरात (Gujarat) के वलसाड़ (Valsad) तहसील के मगोद डुंगरी गांव (Magod Dungri Village) में एक अनोखा मंदिर है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां किसी देवी-देवता नहीं बल्कि व्हेल मछली की हडि्डयों की पूजा की जाती है। इस मंदिर को मत्स्य माताजी (Matsya Mata Temple) के नाम से जाना जाता है। 300 साल पुराने इस मंदिर का निर्माण गांव के ही मछुआरों ने करवाया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि मछली पकड़ने के लिए समुद्र में जाने से पहले यहां रहने वाले सारे मछुआरे पहले मंदिर में माथा जरूर टेकते हैं। इस मंदिर का विशेष आकर्षण हर साल नवरात्रि में लगने वाला अष्टमी का मेला है। इस भव्य मेले को देखने लोग दूर-दूर से आते हैं।

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ये है मंदिर से जुड़ी मान्यता
इस मंदिर के निर्माण के पीछे एक मान्यता है, जिसके अनुसार 300 साल पहले गांव के ही एक निवासी को एक सपना आया था कि समुद्र तट पर एक विशाल मछली आई हुई है। उसने सपने में यह भी देखा था कि वह मछली एक देवी का रूप धारण कर तट पर पहुंचती है, लेकिन वहां आने पर उनकी मौत हो गई। बाद में जब उस व्यक्ति ने समुद्र तट पर जाकर देखा तो सच में वहां एक बड़ी मछली मरी पड़ी थी। उस मछली के विशाल आकार को देखकर गांव वाले हैरान हो गए। दरअसल, वो एक व्हेल मछली थी। जब अपने सपने की पूरी बात लोगों को बताई तो लोगों ने उस व्हेल मछली को देवी का अवतार मान लिया और वहां मत्स्य माता के नाम से एक मंदिर बनवाया गया। उस मंदिर में मछली की हडि्डयां रख दी गई। कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया। इस घटना के कुछ दिन बाद गांव में महामारी फैल गई। तब लोगों ने जाकर मत्स्य देवी से प्रार्थना की। इसके बाद धीरे-धीरे वो भयंकर बीमारी अपने आप ठीक हो गई। 

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कैसे पहुंचें?
इस मंदिर तक आने के लिए आपको वलसाड़ तक आना होगा। जिसके लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन वलसाड़ का ही है। जबकि पास का एयरपोर्ट सूरत का है। 

 

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