बहुत खास पत्थर से बनी है ये विष्णु प्रतिमा, कभी लंदन के म्यूजियम में थी, आज गोरखपुर के इस मंदिर में है स्थापित

हमारे देश भारत में अनेक प्राचीन मंदिर व देव प्रतिमाएं हैं। इन्हीं में से एक है उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के गोरखपुर (Gorakhpur) में स्थित विष्णु मंदिर (Vishnu Temple)। यहां स्थापित भगवान विष्णु की प्रतिमा बहुत ही विशेष है। यह 12वीं सदी की प्रतिमा है।

उज्जैन. इतिहासकारों के अनुसार जो प्रतिमा आज गोरखपुर के विष्णु मंदिर में स्थापित है, उसे अंग्रेज उठाकर लन्दन ले गए थे और वहां रॉयल म्यूजियम में रखवा दी थी। मझौली राज स्टेट की महारानी श्याम कुमारी यह प्रतिमा वहां से लेकर आई और अपने पति स्व. राजा कौशल किशोर प्रसाद मल्ल की याद में असुरन पर एक मंदिर का निर्माण कराया। उसी मंदिर में प्रतिमा स्थापित कराई। भगवान विष्णु की इस प्राचीन प्रतिमा के दर्शन करने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं।

एक मिस्त्री को मिली थी ये प्रतिमा
- स्थानीय लोग बताते हैं कि असुरन पर पहले बड़ा पोखरा हुआ करता था। यहां चरवाहे और घसियारे आते थे और अपने जानवरों को चराने के साथ ही यहां से घास इत्यादि काटकर ले जाते थे।
- एक दिन एक मिस्त्री को पोखरे में एक काले रंग का शिलापट दिखा। वह उस शिलापट पर अपने खुरपे की धार रोज तेज करता था। एक दिन सोचा कि इस पत्थर को क्यों न घर लेकर चलूं। उसने शिलापट को पलटा तो उसे दुर्लभ प्रतिमा भगवान विष्णु की दिखी। वह उसे साफ किया और घर ले गया।
- ये बात अंग्रेज कलेक्टर को पता चली तो उसने वह प्रतिमा नंदन भवन में रखवा दी। बाद में इसे जिले के मालखाने में रखवा दिया गया। बाद में अंग्रेज इस प्रतिमा को लंदन ले गए, जहां इसे वहां के रॉयल म्यूजियम में रखवा दिया गया। 
- इस प्रतिमा को लेकर मझौली स्टेट की महारानी रानी श्याम सुन्दर कुमारी ने पहले सेशन कोर्ट में फिर हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन उनकी अपील को ठुकरा दिया गया। बाद में वे प्रीवी कौंसिल ने अपील की जहां फैसला उनके पक्ष में हुआ और भगवान विष्णु की वह प्रतिमा 7 जुलाई 1915 को फिर से गोरखपुर आ सकी।

काले पत्थर की है प्रतिमा
मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु की काले (यानी कसौटी) पत्थर की प्रतिमा अति दुर्लभ है। कसौटी पत्थर की चार भुजाओं वाली सिर्फ दो मूर्तियां देश में हैं। एक तिरुपति बालाजी में और दूसरी गोरखपुर के विष्णु मंदिर में। मंदिर के चारों कोनों पर बद्री विशाल, जगन्नाथ, भगवान द्वारिकाधीश एवं रामेश्वर की स्थापना की गई है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर की परिक्रमा करने से चारों धाम करने का फल श्रद्धालुओं को मिल जाता है।

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