वैकुण्ठ चतुर्दशी 17 नवंबर को, इस दिन भगवान शिव, विष्णु को सौंपते हैं सृष्टि का संचालन

धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु बैकुंठ में निवास करते हैं। साल में एक बार वैकुण्ठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi 2021) आती है। इस बार ये तिथि 17 नवंबर, गुरुवार को है। ऐसी मान्यता है कि चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु सृष्टि का भार भगवान शंकर को सौंप देते हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Nov 5, 2021 6:21 PM IST

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार चातुर्मास में सृष्टि का संचालन शिव ही करते हैं। चार मास सोने के बाद देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं और वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान शंकर सृष्टि का भार पुन: भगवान विष्णु को सौंपते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन बैकुण्ठ लोक के द्वार खुले रहते हैं। जो भी विधि-विधान से इस दिन व्रत और पूजा करता है वो मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के पास बैंकुठ लोक में निवास करता है। इस दिन पूजन व व्रत इस प्रकार करना चाहिए…

वैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा विधि...
- इस दिन सुबह स्नान आदि से निपटकर दिनभर व्रत रखना चाहिए और रात में भगवान विष्णु की कमल के फूलों से पूजा करना चाहिए।
- इसके बाद भगवान शंकर की भी पूजा अनिवार्य रूप से करनी चाहिए। पूजा में इस मंत्र का जाप करना चाहिए-
विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्।
वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।
- रात भर पूजा करने के बाद दूसरे दिन यानी कार्तिक पूर्णिमा (19 नवंबर, शुक्रवार) पर शिवजी का पुन: पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करना चाहिए। बैकुंठ चतुर्दशी का यह व्रत शैवों व वैष्णवों की पारस्परिक एकता एकता का प्रतीक है।

कार्तिक पूर्णिमा की सुबह करें नदी स्नान और शाम को दीपदान...
- कार्तिक मास की पूर्णिमा बड़ी पवित्र तिथि है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि ने इस तिथि को परम पुण्यदायी बताया है।
- इस दिन गंगा स्नान तथा शाम के समय दीपदान करने का विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार, इस दिन किए गए दान, जप आदि का दस यज्ञों के समान फल प्राप्त होता है।
- इस दिन यदि कृत्तिका नक्षत्र हो तो यह महाकार्तिकी होती है, भरणी हो तो विशेष फल देती है और यदि रोहिणी हो तो इसका फल और भी बढ़ जाता है।
- जो व्यक्ति पूरे कार्तिक मास स्नान करते हैं, उनका नियम कार्तिक पूर्णिमा को पूरा हो जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन श्रीसत्यनारायण व्रत की कथा सुनी जाती है।
- शाम के समय मंदिरों, चौराहों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीप जलाए जाते हैं और नदियों में दीपदान किया जाता है।

वैकुण्ठ चतुर्दशी का महत्व
एक बार देवऋषि नारद जी भगवान श्रीहरि यानी विष्णु से सरल भक्ति कर मुक्ति पा सकने का मार्ग पूछते हैं। नारद जी के कथन सुनकर श्री विष्णु जी कहते हैं कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को जो भी बैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत का पालन करते हैं। उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा पूजन करता है। वह बैकुण्ठ धाम को प्राप्त करता है।

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