वट सावित्री का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और संतानहीन स्त्रियां गुणवान संतान पाने के लिए रखती हैं।
उज्जैन. हर साल ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत रखे जाने की परंपरा है। इस साल ये पर्व 10 जून, गुरुवार को है।
इस विधि से करें महिलाएं ये व्रत
- अमावस्या की सुबह वटवृक्ष (बरगद का पेड़) के नीचे महिलाएं व्रत का संकल्प इस प्रकार लें-
- परिवार की सुख-समद्धि और अखंड सौभाग्य के लिए मैं ब्रह्मसावित्री व्रत कर रही हूं। मुझे इसका पूरा फल प्राप्त हो।
- इसके बाद एक टोकरी में सात प्रकार के धान्य (अलग-अलग तरह के 7 अनाज) रखकर, उसके ऊपर ब्रह्मा और ब्रह्मसावित्री तथा दूसरी टोकरी में सत्यवान व सावित्री की प्रतिमा रखकर वट वृक्ष के पास पूजा करें। साथ ही यमदेवता की भी पूजा करें।
- पूजा के बाद महिलाएं वटवृक्ष की परिक्रमा करें और जल चढ़ाएं। परिक्रमा करते समय 108 बार सूत लपेटें। परिक्रमा करते समय नमो वैवस्वताय मंत्र का जाप करें।
- नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए सावित्री को अर्घ्य दें-
अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्ध्यं नमोस्तुते।।
- वटवृक्ष पर जल चढ़ाते समय यह प्रार्थना करें-
वट सिंचामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमै:।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोसि त्वं महीतले।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैस्च सम्पन्नं कुरु मां सदा।।
- इसके बाद अपनी सास का आशीर्वाद लें। अगर सास न हो तो परिवार की किसी अन्य बुजुर्ग महिला का आशीर्वाद लें। किसी ब्राह्मण स्त्री को सुहाग का सामान दान करें। इस दिन सावित्री-सत्यवान की कथा अवश्य सुनें।
- इसके बाद पूरे दिन उपवास करें। आवश्यकता अनुसार फलाहार ले सकते हैं। इस प्रकार जो महिलाएं व्रत व पूजा करती हैं, उनके पति की उम्र लंबी होती है।
ये है इस व्रत से जुड़ी कथा
पौराणिक कथा है कि सावित्री नामक एक पतिव्रता स्त्री थी, जिसने यमराज से लड़कर अपने पति के जीवन की रक्षा की थी, उसे पुनर्जीवित किया था। इसके लिए सावित्री ने बिना जल लिए और बगैर कुछ खाए 3 दिनों तक पति के प्राणों के लिए तपस्या की थी। बरगद के नीचे ही पति को जीवन मिलने के बाद उसी पेड़ के फूल खाकर और जल पीकर सावित्री ने अपना उपवास पूरा किया था। इसलिए तब से बरगद को जीवन देने वाला पेड़ मानकर उसकी पूजा की जाती है। सावित्री के तप को ध्यान में रखकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना से सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके ये व्रत रखती हैं व अखंड सुहाग का वर पूजा आराधना से प्राप्त करती हैं।