Raksha Bandhan 2022: सावन पूर्णिमा पर है जनेऊ बदलने की परंपरा, क्या आप जानते हैं इसके फायदे?

रक्षाबंधन (Raksha Bandhan 2022) वैसे तो भाई-बहन का त्योहार है। क्योंकि इस दिन बहन अपने भाई को राखी बांधती है और भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है। इस बार ये त्योहार 11 व 12 अगस्त को मनाया जाएगा, ऐसा पंचांग भेद होने के कारण होगा।

उज्जैन. श्रावणी पूर्णिमा (Sawan Purnima 2022) पर एक परंपरा और भी निभाई जाती है, जिसे श्रावणी उपाकर्म कहते हैं। ये परंपरा सिर्फ ब्राह्मण समाज के लोगों से जुड़ी है। इस दिन ब्राह्मण किसी नदी के तट पर एकत्रित होकर एक विशेष पूजन करते हैं और अपने जनेऊ बदलते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से वर्ष भर में जाने-अनजाने में हुए पापों का प्रायश्चित हो जाता है और लाइफ में पॉजिटिविटी बनी रहती है। आगे जानिए श्रावणी उपाकर्म (Shravani Upakarma 2022) से जुड़ी खास बातें…

क्या है श्रावणी उपाकर्म की परंपरा?
धर्म ग्रंथों के अनुसार श्रावणी पूर्णिमा पर ब्राह्मण नदी के तट पर पंचगव्य (गाय के दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र तथा पवित्र कुशा) से स्नान करते हैं। इसके बाद ऋषि पूजन, सूर्योपस्थान एवं यज्ञोपवीत पूजन तथा नया यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करते हैं साथ ही पुराने यज्ञोपवित का पूजन भी करते हैं। इस संस्कार से व्यक्ति का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। इसके बाद यज्ञ किया जाता है, जिसमें ऋग्वेद के विशेष मंत्रों से आहुतियां दी जाती हैं। प्राचीन काल में इस प्रकिया के बाद ही नए बटुकों की शिक्षा आरंभ की जाती थी। आज भी गुरुकुलों में इस परंपरा का पालन किया जाता है।

क्यों खास है जनेऊ? (janeoo kyon pahanate hain)
हिंदू धर्म में 16 संस्कार किए जाते हैं, इनमें यज्ञोपवित संस्कार भी एक है। इस संस्कार में जनेऊ धारण करवाई जाती है। जनेऊ को बहुत ही पवित्र माना जाता है। इसमें 3 धागे होते हैं, जो देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं। साथ ही इन्हें गायत्री मंत्र के तीन चरणों और तीन आश्रमों का प्रतीक भी माना जाता है। यज्ञोपवीत के हर एक धागे में तीन-तीन तार होते हैं। इस तरह कुल तारों की संख्या नौ होती है। इसमें पांच गांठ लगाई जाती है, जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है। 

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ये हैं जनेऊ पहनने के फायदे (janeoo pahanane ke phaayade)
हमारे धर्म ग्रंथों में जनेऊ पहनने के कई फायदे भी बताए गए हैं जैसे इसे पहनने से बुरे सपने नहीं आते। याददाश्त तेज होती है, इसलिए कम उम्र में ही बच्चों का यज्ञोववित संस्कार कर दिया जाता है। जनेऊ पहनने में मन में पवित्रता का अहसास होता है और व्यक्ति का मन बुरे कामों की ओर नहीं जाता।

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