Vat Savitri Vrat 2022: कब है वटसावित्री व्रत? इस दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुनने से मिलते हैं शुभ फल

धर्म ग्रंथों के अनुसार, ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को वट सावित्री (Vat Savitri Vrat 2022) का व्रत किया जाता है। हिंदू धर्म में इस व्रत का विशेष महत्व है। इस बार ये व्रत 30 मई, सोमवार को किया जाएगा।

Manish Meharele | Published : May 24, 2022 12:23 PM IST

उज्जैन. वट सावित्री व्रत के दिन तीर्थ स्नान, दान और व्रत करने का महत्व बताया गया है। इस अमावस्या पर भगवान शिव-पार्वती, विष्णुजी और वट वृक्ष की पूजा की परंपरा है। इसलिए ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को पुराणों में बहुत ही खास माना गया है। ऐसा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। हर तरह के पाप और दोष दूर हो जाते हैं। साथ ही कई गुना पुण्य मिलता है। इस दिन जो महिलाएं व्रत रखती हैं वे सावित्री और सत्यवान की कथा जरूर सुनती है। इस कथा का वर्णन महाभारत आदि कई ग्रंथों में मिलता है। आगे आप भी पढ़िए सावित्री और सत्यवान की कथा… 

ये है सावित्री और सत्यवान की कथा… (Vat Savitri Vrat ki Katha)
पुरातन समय में भद्र देश के राजा राज्य करते थे, उनका नाम अश्वपति था। उनकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने कई सालों तक संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ, हवन आदि कार्य किए। तब कहीं जाकर सावित्री देवी प्रकट होकर उन्हें तेजस्वी कन्या होने का वरदान दिया। सावित्री देवी की कृपा से जन्म लेने के कारण उस कन्या का सावित्री रखा गया।
जब वह कन्या बड़ी हुई तो राजा ने उसका विवाह करने का निर्णय लिया। उन्होंने सावित्री को स्वयं वर तलाशने भेजा। एक दिन वन में जाते हुए सावित्री को एक युवक नजर आया, सावित्री ने उसे अपना पति मान लिया। वो युवक साल्व देश के राजा द्युमत्सेन का पुत्र सत्यवान था। लेकिन उनका राज्य दुश्मनों ने छिन लिया था। इसलिए वे वन में रहते थे।
ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और बताया कि “सावित्री ने जिस युवक को अपना पति चुना है वो गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, पर उसकी आयु बहुत छोटी है, वह अल्पायु हैं। एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी।”
नारद मुनि की बात सुनकर राजा अश्वपति चिंता में पड़ गए और उन्होंने सावित्री से कहा कि तुम कोई दूसरा वर ढूंढ लो, सत्यवान से तुम्हारा विवाह नहीं हो सकता। कारण पूछने पर राजा अश्वपति ने सावित्री को पूरी बात बता दी। सावित्री ने कहा कि “मैंने आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं।” सावित्री के कहने पर राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया।
सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा करने लगी। समय बीतता गया। नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था। हर दिन की तरह सत्यवान लकड़ी काटने जंगल गया तो साथ में सावित्री भी गईं। सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ने लगा वैसे ही उसके सिर में तेज दर्द हुआ और वे सावित्री की गोद में सिर रखकर सो गए।
तभी सावित्री को यमराज आते दिखे। यमराज ने सत्यवान के प्राण निकाले और अपने साथ ले जाने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं। यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यही विधि का विधान है, लेकिन सावित्री नहीं मानी। यमराज ने सावित्री को कई वरदान दिए और सावित्री की जीद के हारकर उन्हें सत्यवान के प्राण भी छोड़ने पड़े। इस प्रकार एक पतिव्रता स्त्री यमराज से अपने पति के प्राण ले आई।


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