पूर्व जन्म में कौन थे भीष्म, किसने दिया था उन्हें मनुष्य रूप में जन्म लेने का श्राप?

इस बार 18 जनवरी, शनिवार को भीष्म जयंती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी तिथि पर द्वापर युग में भीष्म पितामह का जन्म हुआ था।

Asianet News Hindi | Published : Jan 17, 2020 3:41 AM IST

उज्जैन. इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं भीष्म पितामह से जुड़ी रोचक बातें बता रहे हैं जैसे- भीष्म पितामह पूर्वजन्म में कौन थे और उन्हें क्यों मनुष्य रूप में अवतार लेना पड़ा और वे क्यों आजीवन ब्रह्मचारी रहे-

पूर्वजन्म में वसु थे भीष्म पितामाह
- महाभारत के आदि पर्व के अनुसार, एक बार पृथु आदि वसु (एक प्रकार के देवता) अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर घूम रहे थे। वहां वसिष्ठ ऋषि का आश्रम भी था।
- एक वसु पत्नी की दृष्टि ऋषि वसिष्ठ के आश्रम में बंधी नंदिनी गाय पर पड़ गई। उसने उसे अपने पति द्यौ नामक वसु को दिखाया तथा कहा कि वह यह गाय अपनी सखियों के लिए चाहती है।
- पत्नी की बात मानकर द्यौ ने अपने भाइयों के साथ उस गाय का हरण कर लिया। जब महर्षि वसिष्ठ अपने आश्रम आए तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से सारी बात जान ली। क्रोधित होकर ऋषि ने वसुओं को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।
- जब सभी वसु ऋषि वसिष्ठ से क्षमा मांगने आए। ऋषि ने कहा कि तुम सभी वसुओं को तो शीघ्र ही मनुष्य योनि से मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन इस द्यौ नामक वसु को अपने कर्म भोगने के लिए बहुत दिनों तक पृथ्वीलोक में रहना पड़ेगा और आजीवन ब्रह्मचारी के रूप में जीवन बिताना होगा।
- महाभारत के अनुसार द्यौ नामक वसु ने गंगापुत्र भीष्म के रूप में जन्म लिया था। भीष्म का नाम देवव्रत थे। उनके पिता का नाम शांतनु था। पिता की इच्छा पूरी करने के लिए देवव्रत ने आजीवन ब्रह्मचारी रहकर हस्तिनापुर की सेवा करने की भीषण प्रतिज्ञा की।
- इसी के चलते उनका नाम भीष्म प्रसिद्ध हुआ। ऋषि वशिष्ठ के श्राप के प्रभाव से वे लंबे समय तक पृथ्वी पर रहे तथा अंत में इच्छामृत्यु से प्राण त्यागे।
 

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