
उज्जैन. नारद भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक माने जाते हैं। शास्त्रों में देवर्षि नारद को भगवान का मन भी कहा गया है।
श्रीमद्भागवत गीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है- देवर्षीणाम्चनारद:। अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं। 18 महापुराणों में एक नारदोक्त पुराण; बृहन्नारदीय पुराण के नाम से प्रख्यात है।
नारद मुनि ने इसलिए दिया भगवान विष्णु को श्राप
- देवर्षि नारद को इस बात का घमंड हो गया कि कामदेव भी उनकी तपस्या और ब्रह्मचर्य को भंग नहीं कर सके। भगवान विष्णु ने अपनी माया से नारदजी का घमंड तोड़ने के लिए एक बहुत ही सुंदर नगर बसाया।
- यहां राजकुमारी के स्वयंवर का आयोजन किया जा रहा था। नारद भी वहां पहुंच गए और राजकुमारी को देखते ही मोहित हो गए। नारद भगवान विष्णु का सुंदर रूप लेकर उस राजकुमारी के स्वयंवर में पहुंचे। लेकिन वहां पहुंचते ही उनका मुंह बंदर जैसा हो गया।
- राजकुमारी ने जब उन्हें देखा तो बहुत क्रोधित हुई। उसी समय भगवान विष्णु राजा के रूप में आए और राजकुमारी को लेकर चले गए। नारदजी जब पूरी बात पता चली तो उन्हें बहुत गुस्सा आया।
- नारदजी भगवान विष्णु के पास गए और श्राप दिया कि- जिस तरह आज मैं स्त्री के लिए व्याकुल हो रहा हूं, उसी प्रकार मनुष्य जन्म लेकर आपको भी स्त्री वियोग सहना पड़ेगा।
- माया का प्रभाव हटने पर नारदजी को बहुत दुख हुआ। तब भगवान विष्णु ने उन्हें समझाया कि ये सब माया का प्रभाव था, इसमें आपका कोई दोष नहीं है। भगवान विष्णु ने श्रीराम अवतार लेकर नारद के श्राप को सिद्ध किया।