गंगा ने क्यों अपने 7 पुत्रों को नदी में बहाया था? एक ऋषि के श्राप से जुड़ा है ये रहस्य

गंगा के संबंध में अनेक पुराणों में कई कथाएं पढ़ने को मिलती है। महाभारत के सबसे प्रमुख पात्र भीष्म गंगा के आठवें पुत्र थे।

उज्जैन. गंगा ने जन्म देते ही अपने 7 पुत्रों को नदी में बहा दिया था। इसका कारण एक ऋषि का श्राप था। आज हम आपको गंगा से जुड़ी कुछ ऐसी रोचक बातें बता रहे हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं-

राजा शांतनु की पत्नी बनी गंगा
एक बार हस्तिनापुर के राजा शांतनु शिकार खेलते-खेलते गंगा नदी के तट पर आए। यहां उन्होंने एक परम सुदंर स्त्री (वह स्त्री देवी गंगा ही थीं) को देखा। शांतनु ने उससे प्रणय निवेदन किया। उस स्त्री ने कहा कि मुझे आपकी रानी बनना स्वीकार है, लेकिन मैं तब तक ही आपके साथ रहूंगी, जब तक आप मुझे किसी बात के लिए रोकेंगे नहीं, न ही मुझसे कोई प्रश्न पूछेंगे। ऐसा होने पर मैं तुरंत आपको छोड़कर चली जाऊंगी। राजा शांतनु ने उस सुंदर स्त्री का बात मान ली और उससे विवाह कर लिया।

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इस तरह गंगा ने किया राजा शांतनु का अप्रिय
समय बीतने पर शांतनु के यहां सात पुत्रों ने जन्म लिया, लेकिन सभी पुत्रों को उस स्त्री ने गंगा नदी में डाल दिया। शांतनु यह देखकर भी कुछ नहीं कर पाएं क्योंकि उन्हें डर था कि यदि मैंने इससे इसका कारण पूछा तो यह मुझे छोड़कर चली जाएगी। आठवां पुत्र होने पर जब वह स्त्री उसे भी गंगा में डालने लगी तो शांतनु ने उसे रोका और पूछा कि वह यह क्यों कर रही है?
उस स्त्री ने बताया कि मैं देवनदी गंगा हूं तथा जिन पुत्रों को मैंने नदी में डाला था वे सभी वसु थे जिन्हें वसिष्ठ ऋषि ने श्राप दिया था। उन्हें मुक्त करने लिए ही मैंने उन्हें नदी में प्रवाहित किया। आपने शर्त न मानते हुए मुझे रोका। इसलिए मैं अब जा रही हूं। ऐसा कहकर गंगा शांतनु के आठवें पुत्र को लेकर अपने साथ चली गई।

वसुओं ने क्यों लिया गंगा के गर्भ से जन्म?
महाभारत के आदि पर्व के अनुसार, एक बार द्यौ आदि वसुओं ने ऋषि वसिष्ठ की गाय नंदिनी का हरण कर लिया था। क्रोधित होकर महर्षि वसिष्ठ ने उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। क्षमा मांगने पर ऋषि ने कहा कि- तुम सभी वसुओं को तो शीघ्र ही मनुष्य योनि से मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन इस द्यौ नामक वसु को बहुत दिनों तक पृथ्वीलोक में रहना पड़ेगा। इस श्राप की बात जब वसुओं ने गंगा को बताई तो गंगा ने कहा कि- मैं तुम सभी को अपने गर्भ में धारण करूंगी और तत्काल मनुष्य योनि से मुक्त कर दूंगी। गंगा ने ऐसा ही किया। वसिष्ठ ऋषि के श्राप के कारण द्यौ नामक वसु ने भीष्म के रूप में जन्म लिया और पृथ्वी पर रहकर दुख भोगने पड़े।

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