अक्षय तृतीया पर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इस विधि से करें पूजा, न खरीद पाएं सोना तो ये करें

अक्षय तृतीया स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में से एक है इसलिए इसका बड़ा महत्व है। इस दिन किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है।

Asianet News Hindi | Published : May 14, 2021 3:29 AM IST

उज्जैन. इस बार तृतीया तिथि 14 मई को सूर्योदय पूर्व प्रात: 5.38 बजे से प्रारंभ होकर 15 मई को प्रात: 8 बजे तक रहेगी। अर्थात् तृतीया तिथि 26 घंटे 22 मिनट तक अहोरात्र में रहेगी। तृतीया तिथि दो दिन सूर्योदयकालीन रहेगी लेकिन पर्वकाल 14 मई को ही संपूर्ण दिन-रात रहेगा।

इसी तिथि से हुआ था त्रेता युग का आरंभ
- अक्षय तृतीया को भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।
- इस दिन विष्णु के नर और नारायण अवतार लेने के साथ त्रेता युग का आरंभ भी माना जाता है।
- इस दिन स्वर्ण खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है। साथ ही पवित्र नदियों में स्नान करके दान-पुण्य करने से करोड़ों यज्ञों के समान पुण्य प्राप्त होता है।
- अक्षय नाम से ही ज्ञात है, इस तिथि में किए गए कार्य का फल कभी नष्ट नहीं होता। इस दिन किए गए दान का अक्षय पुण्य मिलता है।
- इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का भी बड़ा महत्व है।

जो स्वर्ण घर में है उसी का पूजन करें
- अक्षय तृतीया पर स्वर्ण खरीदने और उसकी पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। माना जाता है किइस दिन सोना खरीदने से घर में हमेशा संपन्नता बनी रहती है।
- लेकिन इस बार बाजार बंद होने की वजह से सोना नहीं खरीद पाएंगे। इसलिए आपके घर में सोने के जो भी आभूषण उपलब्ध हों, उनकी ही पूजा कर लें।
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार स्वर्ण पर विशेषतौर पर बृहस्पति का आधिपत्य होता है। इसलिए इस दिन स्वर्ण पूजा करके बृहस्पति की भी विशेष कृपा प्राप्त की जा सकती है।

लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए यह जरूर करें
- अक्षय तृतीया के दिन स्वर्ण के साथ लक्ष्मी पूजा का भी खास महत्व होता है। इस दिन दीपावली की तरह ही महालक्ष्मी का पूजन भी किया जाता है।
- घर के सभी स्वर्ण आभूषणों को कच्चे दूध और गंगाजल या शुद्ध जल से धोकर एक लाल कपड़े पर रखें और केसर, कुमकुम से पूजन कर लाल पुष्प अर्पित करें।
- इसके बाद महालक्ष्मी के मंत्र ऊं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महालक्ष्म्यै नम: मंत्र की एक माला कमलगट्टे की माला से जाप करें।
- कर्पूर से आरती करें। इसके बाद शाम के समय इन आभूषणों को यथास्थान तिजोरी में रख दें।

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