सार
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाता है। कुछ स्थानों पर इसे आखा तीज भी कहते हैं। हिंदू धर्म में इस तिथि का विशेष महत्व है, क्योंकि यह साल में आने वाले 4 अबूझ मुहूर्तों में से एक है (अक्षय तृतीया के अलावा देवउठनी एकादशी, वसंत पंचमी व भड़ली नवमी को भी अबूझ मुहूर्त माना जाता है)।
उज्जैन. इस बार अक्षय तृतीया का पर्व 14 मई, शुक्रवार को है। आज हम आपको अक्षय तृतीया से जुड़ी कुछ खास बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…
अक्षय तृतीया क्यों है विशेष?
इस तिथि पर किए गए दान-धर्म का अक्षय यानी कभी नाश न होने वाला फल व पुण्य मिलता है। इसलिए यह सनातन धर्म में दान-धर्म का अचूक काल माना गया है। इसे चिरंजीवी तिथि भी कहते हैं, क्योंकि यह तिथि 8 चिरंजीवियों में एक भगवान परशुराम की जन्म तिथि भी है। हिंदू धर्म मान्यताओं में किसी भी शुभ काम के लिए साल के स्वयं सिद्ध मुहूर्तों में आखा तीज भी एक है।
किन पौराणिक मान्यताओं के कारण शुभ है अक्षय तृतीया?
शास्त्रों के मुताबिक वैशाख माह विष्णु भक्ति का शुभ काल है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस माह की अक्षय तृतीया को ही भगवान विष्णु के नर-नरायण, हयग्रीव और परशुराम अवतार हुए थे। इसलिए इस दिन परशुराम जयंती, नर-नारायण जयंती भी मनाई जाती है। त्रेतायुग की शुरुआत भी इसी शुभ तिथि से मानी जाती है। इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा भी पुण्यदायी व महामंगलकारी मानी जाती है।
अक्षय तृतीया पर किन चीजों के दान का है खास महत्व?
इस शुभ तिथि पर किए गए दान व उसके फल का नाश नहीं होता। इस दिन खासतौर पर जौ, गेहूं, चने, सत्तू, दही-चावल, गन्ने का रस, दूध के बनी चीजें जैसे मावा, मिठाई आदि, सोना और जल से भरा कलश, अनाज, सभी तरह के रस और गर्मी के मौसम में उपयोगी सारी चीजों के दान का महत्व है। पितरों का श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन कराने का भी अनन्त फल मिलता है।
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