कृष्णमूर्ति कई ठौर बदल चुके हैं पर उस एक हार के बाद जीत नसीब नहीं हुई। ध्रुवनारायण ने एक वोट से पहला चुनाव जीतने के बाद तीन बड़े चुनाव जीते। इसमें दो विधानसभा और दो लोकसभा शामिल हैं।
नई दिल्ली। बिहार में विधानसभा चुनाव के साथ ही कुछ राज्यों में उपचुनाव होने वाले हैं। चुनाव लोकतांत्रिक देशों में एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसी ताकत से मतदाता उम्मीदों पर खरा न उतरने वाले दलों, प्रतिनिधि और सरकारों को हराने या जिताने का अधिकार पाते हैं। लोकतंत्र में सरकार का कंट्रोल जनता को मिली वोट की शक्ति से ही होता है। और जनता की चुनी गई सरकार सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दों पर काम करती है। यह सोचना कि एक अकेले वोट से कोई फर्क नहीं पड़ता उन्हें एआर कृष्णमूर्ति की पूरी कहानी पढ़नी चाहिए।
एक वक्त में एआर कृष्णमूर्ति की गिनती कर्नाटक के अहम नेताओं में होने लगी थी। दरअसल, उन्होंने अपने पिता बी रचैया के पदचिन्ह पर आगे बढ़ते हुए Santhemarahalli विधानसभा सीट से 1994 और 1999 में दो बार विधानसभा का चुनाव जीता था। जनता दल सेकुलर के टिकट पर इसी विधानसभा सीट से वो तीसरी बार 2004 के विधानसभा चुनाव में लड़ रहे थे। उनका मुकाबला बीजेपी से कांग्रेस के पाले में आए आर ध्रुवनारायण से था। कृष्णमूर्ति ने भी 2004 के चुनाव से ठीक पहले ही जनता दल सेकुलर का दामन थामा था।
कर्नाटक के इतिहास में सांस रोक देने वाला नतीजा
उस चुनाव में कर्नाटक की इस एक सीट का नतीजा सबसे दिलचस्प रहा। हर मिनट की काउंटिंग में सांस रोक देने वाली कांटे की लड़ाई दिखीं। एक पल कोई उम्मीदवार आगे होता तो अगले ही क्षण में पीछे चल रहा उम्मीदवार लीड बना लेता। उम्मीदवारों के साथ उनके समर्थकों को भी अंतिम क्षण तक यह समझ नहीं आ रहा था कि यहां से आखिर कौन जीतेगा? सीट पर दोनों उम्मीदवारों को 42.77 प्रतिशत वोट मिले। लेकिन जब काउंटिंग खत्म हुई तो नतीजे और ज्यादा हैरान करने वाले थे।
जेडीएस उम्मीदवार कृष्णमूर्ति को 40,751 वोट मिले जबकि कांग्रेस के ध्रुवनारायन को 40,752 वोट मिले। लगातार दो बार विधायक चुने जा रहे कृष्णमूर्ति को सिर्फ एक वोट से अपनी हार का बिल्कुल भरोसा नहीं हो रहा था। उन्होंने फिर से रीकाउंटिंग की मांग की। मगर नतीजा इसके बाद भी पहले वाला ही रहा। काफी हुज्जत के बाद रात 8 बजे ध्रुवनारायण को विजेता घोषित किया गया। ईवीएम चुनाव के इतिहास में कृष्णमूर्ति एक वोट से हारने वाले पहले उम्मीदवार हैं।
मामले को लेकर हाईकोर्ट भी पहुंचे कृष्णमूर्ति
कृष्णमूर्ति को अब भी भरोसा नहीं हो रहा था और वो मामले को कर्नाटक हाई कोर्ट लेकर गए। उन्होंने अपने पक्ष में अन्तरिम आदेश की मांग की। ध्रुवनारायण भी रिजल्ट बरकरार रखने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। बहरहाल तब कृष्णमूर्ति ने अपनी हार के लिए बीजेपी पर ठीकरा फोड़ा था। पिछले चुनाव में 25 हजार से ज्यादा वोट पाने वाली बीजेपी को 2004 के चुनाव में सिर्फ 3 हजार वोट मिले थे। वो बीजेपी को कम मिले वोटों पर शक कर रहे थे। हालांकि बाद में 2008 में उन्होंने बीजेपी जॉइन कर ली और प्रदेश उपाध्यक्ष बनाए गए।
पार्टियां बदली पर लगातार मिली हार, जीतते रहे ध्रुवनारायण
2008 के चुनाव में ध्रुवनारायण ने Kollegal विधानसभा सीट से 11,800 मतों से फिर जीत दर्ज की। कृष्णमूर्ति चौथे नंबर पर चले गए। बाद में कृष्णमूर्ति ने 2009 और 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा मगर हार गए। 2018 में उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में भी विधानसभा चुनाव लड़ा मगर Kollegal सीट पर वो बीएसपी उम्मीदवार एन महेश के हाथों भी हार गए। कृष्णमूर्ति कई ठौर बदल चुके हैं पर उस एक हार के बाद जीत नसीब नहीं हुई। ध्रुवनारायण ने एक वोट से पहला चुनाव जीतने के बाद एक पर एक चार बड़े चुनाव जीते। इसमें दो विधानसभा और दो लोकसभा के थे। तो अब पता चल ही गया होगा कि एक वोट से क्या फर्क पड़ता है।