बिहार में चुनाव से पहले 'राज्यसभा' में NDA-महागठबंधन के बीच दो-दो हाथ; दांव पर लालू की प्रतिष्ठा

राज्यसभा में जिस तरह से लालू की प्रतिष्ठा लग गई है उस स्थिति में रघुवंश की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो गई है। आरजेडी में रघुवंश ही इकलौते नेता थे जिनकी दिल्ली में लालू से भी ज्यादा पैठ है। दूसरी पार्टियों में रघुवंश के रिश्ते भी काफी गहरे और मजबूत हैं।

Asianet News Hindi | Published : Sep 11, 2020 9:51 AM IST / Updated: Sep 11 2020, 04:25 PM IST

पटना। बिहार में 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव से पहले राज्यसभा में उपसभापति के चुनाव के जरिए NDA और महागठबंधन एक-दूसरे की राजनीतिक ताकत का अंदाजा लगाना चाह रहे हैं। आरजेडी-कांग्रेस के नेतृत्व में साझे विपक्ष की कोशिश है कि वह राज्यसभा में स्ट्रेटजी बनाकर एनडीए उम्मीदवार की हार को बिहार चुनाव में एनडीए सरकार की कमजोरी के रूप में प्रचारित करे। इसी के मद्देनजर विपक्ष की ओर से लालू यादव की पार्टी आरजेडी के मनोज झा को उम्मीदवार बनाया गया है। जबकि जबकि एनडीए की तरफ से जेडीयू सांसद और मौजूदा उपसभापति हरिवंश प्रसाद सिंह उम्मीदवार हैं। दोनों ही उम्मीदवार सवर्ण और बिहार से ही हैं। दोनों को साफ छवि का माना जाता है। 

ये चुनाव लालू यादव की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है। रघुवंश प्रसाद सिंह के इस्तीफे के बाद बिहार की राजनीति को लेकर चीजें तेजी से साफ हो रही हैं। राज्यसभा में जिस तरह से लालू की प्रतिष्ठा लग गई है उस स्थिति में रघुवंश की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो गई है। हो सकता है कि दिल्ली में उपसभापति चुनाव की वजह से ही एनडीए, रघुवंश में ज्यादा दिलचस्पी ले रहा है। बताने की जरूरत नहीं कि रघुवंश, लालू यादव के बेहद करीबी होने के साथ ही अबतक दिल्ली में आरजेडी का एकमात्र भरोसेमंद चेहरा भी थे। 

(रघुवंश के इस्तीफे के बाद लालू की चिट्ठी।)

लालू के पास रघुवंश का कोई जवाब नहीं 
आरजेडी में रघुवंश ही इकलौते नेता थे जिनकी दिल्ली में लालू से भी ज्यादा पैठ है। दूसरी पार्टियों में रघुवंश के रिश्ते भी काफी गहरे और मजबूत हैं। लालू खुद भ्रष्टाचार के मामले में जेल की सजा काट रहे हैं। जाहिर सी बात है कि रघुवंश की मौजूदगी के बिना आरजेडी उपसभापति चुनाव में कोई करिश्मा नहीं कर सकती हैं। पिछले दिनों तेजस्वी यादव और मनोज झा, अस्पताल जाकर रघुवंश से मिले भी थे। 

हालांकि तब मुलाकात को राजनीतिक नहीं बताया गया, लेकिन अब लग रहा है कि इसके पीछे कहीं न कहीं राज्यसभा में उपसभापति का चुनाव और ठीक उसी वक्त अपनी अहमियत समझ रहे रघुवंश की नाराजगी का कनेक्शन है। अब इस बात का भी अंदाजा लगाना आसान है कि विधानसभा चुनाव से पहले लालू को चोट पहुंचाने के लिए ही जेडीयू और बीजेपी लगातार आरजेडी में रघुवंश एपिसोड में दिलचस्पी ले रही हैं। 

आरजेडी की वजह से एनडीए का संकट 
अगर बात करें राज्यसभा में राजनीतिक स्थिति की तो इस वक्त एनडीए और महागठबंधन दोनों के पास जीतने के लिए पर्याप्त संख्याबल नहीं है। उपसभापति का चुनाव जीतने के लिए दोनों मोर्चों को अपने गठबंधन से अलग तीसरे दलों के समर्थन की जरूरत होगी। राज्यसभा में 245 सांसद हैं। एनडीए के पास सिर्फ 116 सांसद हैं। ओडिसा से बीजू जनता दल, तेलंगाना से टीआरएस और आंध्रप्रदेश से वाईएसआर के एनडीए को सपोर्ट करने की उम्मीद है। हालांकि इस बार रणनीति के तहत विपक्ष का उम्मीदवार कांग्रेस की बजाय आरजेडी से है। 

इसी चीज ने रघुवंश के आगे लालू और एनडीए को कमजोर बना दिया है। दरअसल, कांग्रेस की वजह से पिछली बार एनडीए के पक्ष में आए दल आरजेडी के पक्ष में जा सकते हैं। चुनाव में हार से बिहार में एनडीए के अभियान पर सवाल खड़ा हो सकता है। एनडीए हर हाल में चुनाव जीतना चाहता है। फिलहाल की स्थिति में रघुवंश को साथ लेने से एनडीए रेस में आरजेडी से बहुत आगे निकल जाएगा। एक मोर्चे पर सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के संयुक्त प्रयास को भी धक्का पहुंचेगा। 

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