बाहुबली से सोशल वर्कर बने पप्पू यादव को मिली हार, बोले-ईवीएम से चुनाव नहीं होना चाहिए

साल 1986-87 में लालू प्रसाद यादव की राजनीति ऊपर की ओर बढ़ रही थी। इस दौर में पप्पू यादव बिहार में विरोधी दल के नेता बनना चाहते थे। कहते हैं कि लालू की राजनीति को जमाने में तब दलित-पिछड़ा समाजवादी नेताओं के साथ बाहुबलियों ने भी काफी मदद की। इन्हीं में से पप्पू यादव और मोहम्मद शहाबुद्दीन भी थे। 

पटना (Bihar) । जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष पप्पू यादव मधेपुरा से चुनाव हार गए हैं। उन्होंने ने अपनी हार का ठिकरा ईवीएम पर फोड़ा है। पूर्व सांसद पप्पू यादव ने कहा है कि ईवीएम से चुनाव नहीं होना चाहिए। बता दें कि उनकी पहचान बिहार में कभी बाहुबली के रूप में की जाती थी। उनकी दबंग छवि थी। लेकिन, आज की तारीख में वह बाहुबल की राजनीति से मीलों दूर हैं और एक सोशलवर्कर के रूप में जाने जाते हैं। 

यह है राजनीतिक सफरनामा
पप्पू यादव ने 1990 में सिंहेश्वरस्थान, मधेपुरा से विधानसभा का चुनाव लड़े और चुन लिए गए। 1991 में पूर्णिया से 10वीं लोकसभा के लिए चुनाव लड़े और जीते। इसके बाद पप्पू ने साल 1996, 1999 और 2004 में लोकसभा चुनाव जीते। मई 2015 में आरजेडी से पप्पू यादव को निकाल दिया, क्योंकि उनपर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगा। राजद से निकाले जाने के बाद पप्पू ने अपनी नई पार्टी "जन अधिकार पार्टी" बनाई। साल 2015 के चुनाव में पप्पू ने मधेपुरा का चुनाव जीते, मगर 2019 का चुनाव हार गए। पप्पू यादव की पार्टी 2020 के विधानसभा चुनाव में भी कई सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रही है। वो छोटे छोटे दलों के साथ गठबंधन की कोशिश में भी हैं।

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कभी थे लालू के करीबी
साल 1986-87 में लालू प्रसाद यादव की राजनीति ऊपर की ओर बढ़ रही थी। इस दौर में पप्पू यादव बिहार में विरोधी दल के नेता बनना चाहते थे। कहते हैं कि लालू की राजनीति को जमाने में तब दलित-पिछड़ा समाजवादी नेताओं के साथ बाहुबलियों ने भी काफी मदद की। इन्हीं में से पप्पू यादव और मोहम्मद शहाबुद्दीन भी थे। लालू की वजह से ही पप्पू राजनीति में सक्रिय हुए थे और एक समय आरजेडी चीफ से उनकी इतनी करीबी थी कि लोग उन्हें लालू का उत्तराधिकारी भी कहने लगे थे। हालांकि वक्त के साथ ऐसा संभव नहीं हो पाया।

इंटरव्यू में किए थे ये खुलासा
एक इंटरव्यू में पप्पू यादव ने कहा था, "शुरू में मैं तो एक सीधा-सादा छात्र था और लालू यादव को अपना आदर्श मानता था। लेकिन, ऐसा नहीं था। वो बार-बार छल करते गए। वो विरोधी दल का नेता बनना चाहते थे। उस समय इस दौड़ में अनूप लाल यादव, मुंशी लाल और सूर्य नारायण भी शामिल थे। मैं अनूप लाल यादव के घर में ही रहता था। लेकिन, मैं लालू का समर्थन कर रहा था।" हालांकि पप्पू यादव खुद के बाहुबली होने की बात को लगातार खारिज करते आए हैं। लालू के नेता विरोधी दल बनने के बाद पटना के सभी अखबारों में एक खबर प्रकाशित हुई कि कांग्रेस नेता शिवचंद्र झा की हत्या करने के लिए पूर्णिया से एक कुख्यात अपराधी पप्पू यादव पटना पहुंचा है, जिसकी खबर पटना विश्वविद्यालय के पीजी हॉस्टल जाने पर हुई, जबकि किसी थाने में कोई केस तक नहीं दर्ज था।

पप्पू यादव ने सुनाई थी ये कहानी
पप्पू यादव के मुताबिक "मैं तीन दिनों तक अपने एक मित्र के घर में रहा। वहां से कोलकता भाग गया। मगर, पुलिस मेरे पीछे पड़ गई और मेरे पीछे घर की कुर्की भी हो गई। मां-बाप को सड़क पर रात गुजारनी पड़ी। मेरे पिता लालू से मिले, लेकिन उन्होंने मदद देने से इनकार कर दिया।" पप्पू यादव के नाम से जुड़ा जो चर्चित मामला है वो माकपा के पूर्व विधायक अजित सरकार की हत्या का है। अजित सरकार और पप्पू यादव के बीच किसानों के मुद्दे को लेकर राजनीतिक मतभेद था। 14 जून, 1998 को पूर्णिया में अज्ञात हमलावरों ने अजित सरकार की गोली मार कर हत्या कर दी थी। इस केस में आरोप पप्पू यादव के ऊपर लगा। मामले के संवेदनशील और राजनीतिक होने की वजह से स्वतंत्र जांच के लिए सीबीआई का भी गठन किया गया।

ऐसे की थी राजनीति में इंट्री
सीबीआई की विशेष अदालत ने 2008 में इसी हत्याकांड के लिए पप्पू यादव, राजन तिवारी और अनिल यादव को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हालांकि पप्पू यादव ने खुद पर लगे आरोपों के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में अपील की। 2008 में सुनवाई के दौरान सबूत और साक्ष्य की बिना पर हाईकोर्ट ने पप्पू यादव को रिहा कर दिया था।पप्पू यादव को तिहाड़ और पटना की बेऊर जेल में भी रहना पड़ा। तिहाड़ जेल में बिताए दिनों के अनुभव को पप्पू यादव ने एक किताब में विस्तार से लिखा है। पप्पू यादव के जीवन पर आधारित किताब द्रोहकाल का पथिक काफी लोकप्रिय है। इसमें उनके जीवन के कई पहलुओं पर विस्तार से जानकारी दी गई है।
 

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