बिहार की इस सीट पर मुस्लिम मतदाताओं का दबदबा, 10 साल पहले सिर्फ 264 वोट से हार गई थी BJP

किशनगंज बिहार की ऐसी विधानसभा सीट है जहां पर हमेशा से मुस्लिम प्रत्याशियों का दबदबा रहा है। यहां गैरमुस्लिम प्रत्याशी के रूप में सिर्फ एक बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की सुशीला कपूर ने 1967 में जीत दर्ज की थी।

किशनगंज/पटना। बिहार में विधानसभा (Bihar Polls 2020) हो रहे हैं। इस बार राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर 7.2 करोड़ से ज्यादा वोटर मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 2015 में 6.7 करोड़ मतदाता थे। कोरोना महामारी (Covid-19) के बीचे चुनाव कराए जा रहे हैं। इस वजह से इस बार 7 लाख हैंडसैनिटाइजर, 46 लाख मास्क, 6 लाख PPE किट्स और फेस शील्ड, 23 लाख जोड़े ग्लब्स इस्तेमाल होंगे। यह सबकुछ मतदाताओं और मतदानकर्मियों की सुरक्षा के मद्देनजर किया जा रहा है। ताकि कोरोना के खौफ में भी लोग बिना भय के मताधिकार की शक्ति का प्रयोग कर सकें। बिहार चुनाव समेत लोकतंत्र की हर प्रक्रिया में हर एक वोट की कीमत है।

किशनगंज बिहार की ऐसी विधानसभा सीट है जहां पर हमेशा से मुस्लिम प्रत्याशियों का दबदबा रहा है और इसकी वजह मुस्लिम मतदाताओं का निर्णायक होना है। यहां गैरमुस्लिम प्रत्याशी के रूप में सिर्फ एक बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की सुशीला कपूर ने 1967 में जीत दर्ज की थी। मजेदार यह भी है कि समूचे बिहार में सिमटने के बावजूद कांग्रेस का इस सीट पर हमेशा मजबूत आधार दिखा है। इस सीट पर बीजेपी आजतक खाता नहीं खोल पाई है। हालांकि कई मौके आए हैं जब यहां जीतने वाले प्रत्याशियों का सीधा मुक़ाबला बीजेपी से हुआ। 

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2010 में हुआ था सबसे मुश्किल चुनाव 
किशनगंज के इतिहास में सबसे मुश्किल चुनाव 2010 में देखने को मिला था। ये ऐसा चुनाव था जब प्रत्याशियों के लिए एक-एक वोट की अहमियत समझ में आई। 2010 में यहां कांग्रेस, आरजेडी और बीजेपी के बीच त्रिकोणात्मक संघर्ष था। आरजेडी ने तासीर को, कांग्रेस ने मोहम्मद जावेद को और बीजेपी ने स्वीटी सिंह को मैदान में उतारा था। सीधी लड़ाई जावेद और स्वीटी सिंह में हुई। 

जीत के करीब आकर फंस गई बीजेपी 
मतगणना में वोटों का संघर्ष बेहद नजदीकी था। एक बार लगा कि 2010 में किशनगंज के नतीजे ऐतिहासिक होने जा रहे हैं और शायद बीजेपी इसे जीतकर मिथक तोड़ने में कामयाब हो। लेकिन जब आखिरी राउंड की मतगणना खत्म हुई बीजेपी मात्र 264 वोटों की वजह से किशनगंज जीतते-जीतते रह गई। बीजेपी के टिकट पर कई कोशिशों के बावजूद स्वीटी यहां की विधायक नहीं बन पाईं। 

एआईएमआईएम ने कांग्रेस से छीन ली है ये सीट 
कांग्रेस उम्मीदवार मोहम्मद जावेद ने 38, 867 वोट हासिल किए। स्वीटी सिंह को 38, 603 वोट मिले। आरजेडी प्रत्याशी ने भी 22,074 मत बटोरे। बाद में 2015 के चुनाव में कांग्रेस के जावेद ने ये सीट बड़े अंतर से जीती। लेकिन उनका निधन हो गया और 2019 के उपचुनाव में यहां पहली बार ओवैसी की एआईएमआईएम ने खाता खोला।  एआईएमआईएम की बिहार में ये पहली जीत थी। जो लोग यह कहते हैं कि चुनावी प्रक्रिया में एक वोट से क्या फर्क पड़ता है उन्हें किशनगंज के नतीजे को दिखा देना चाहिए। 

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