बिहार की केवटी विधानसभा, जब 29 वोट से BJP ने जीत ली थी सीट; हाथ मलता रह गया RJD प्रत्याशी

1980 के बाद से अब तक हुए चुनाव देखें तो ये बिहार की ऐसी सीट है जहां हमेशा से कांग्रेस, जनता दल या आरजेडी के मुस्लिम प्रत्याशियों का दबदबा देखने को मिलता है।

केवटी/पटना। बिहार में विधानसभा (Bihar Polls 2020) हो रहे हैं। इस बार राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर 7.2 करोड़ से ज्यादा वोटर मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 2015 में 6.7 करोड़ मतदाता थे। कोरोना महामारी (Covid-19) के बीचे चुनाव कराए जा रहे हैं। इस वजह से इस बार 7 लाख हैंडसैनिटाइजर, 46 लाख मास्क, 6 लाख PPE किट्स और फेस शील्ड, 23 लाख जोड़े ग्लब्स इस्तेमाल होंगे। यह सबकुछ मतदाताओं और मतदानकर्मियों की सुरक्षा के मद्देनजर किया जा रहा है। ताकि कोरोना के खौफ में भी लोग बिना भय के मताधिकार की शक्ति का प्रयोग कर सकें। बिहार चुनाव समेत लोकतंत्र की हर प्रक्रिया में हर एक वोट की कीमत है।

10 साल पहले बिहार विधानसभा चुनाव में केवटी सीट (Keoti Vidhan Sabha constituency) पर बहुत ही दिलचस्प चुनाव हुआ था। यहां एक-एक वोट के लिए संघर्ष देखने को मिला था। केवटी विधानसभा दरभंगा जिले में और मधुबनी लोकसभा क्षेत्र में पड़ती है। 1980 के बाद से अब तक हुए चुनाव देखें तो ये बिहार की ऐसी सीट है जहां हमेशा से कांग्रेस (Congress), जनता दल (Janata Dal) या आरजेडी (RJD) के मुस्लिम प्रत्याशियों का दबदबा देखने को मिलता है। पिछले 40 साल के दौरान यहां सिर्फ तीन मौके ऐसे रहे हैं जब मुस्लिम प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा है। 

Latest Videos

ऐतिहासिक था 2010 का चुनाव 
लेकिन यहां सबसे मजेदार राजनीतिक लड़ाई 2010 में देखने को मिली थी। 2010 का चुनाव बिहार में दो गठबंधनों के बीच था। सत्ता की रेस में जेडीयू-बीजेपी (JDU-BJP) के सामने आरजेडी और एलजेपी (LJP) का गठबंधन था। बताते चले कि बीजेपी ने पहली बार ये सीट 2005 में जीती थी। उस साल कुछ महीनों बाद अक्तूबर में फिर चुनाव कराने पड़े थे। हालांकि बीजेपी ने दोबारा भी आरजेडी प्रत्याशी को हराकर सीट जीत ली थी। लेकिन पांच साल बाद 2010 में केवटी की लड़ाई कई मायनों में ऐतिहासिक बन गई। 

जमीन पर आ गई थी लालू यादव की राजनीति
एनडीए कोटे में ये सीट BJP के खाते में थी। पार्टी ने 2010 में भी लगातार दो बार से चुनाव जीत रहे सीटिंग विधायक अशोक कुमार यादव (Ashok Kumar Yadav) पर भरोसा जताया। अशोक के सामने आरजेडी के टिकट पर फराज फातमी (Fraz Fatmi) मैदान में थे। उस साल आरजेडी बिहार में सत्ता वापसी के लिए बेकरार थी। हालांकि 2010 का चुनाव राज्य में लालू यादव का एक और राजनीतिक अवसान साबित हुआ। केवटी की राजनीतिक जमीन को देखते हुए लालू को यहां से अच्छे नतीजे की उम्मीद थी। लालू की उम्मीद यूं ही नहीं थी। कैम्पेन और मतगणना में भी इसे साफ देखा गया। 

29 वोटों से हुआ था हार-जीत का फैसला 
उस साल बिहार में यहां सबसे मुश्किल चुनाव हुआ था। मतगणना में अशोक और फातमी के बीच सांस रोक देने वाली वोटों की लड़ाई दिखी। हालांकि आखिरी राउंड खत्म होने के बाद बीजेपी ने किसी तरह सिर्फ 29 मतों से सीट जीतने में कामयाबी पाई। तब कांग्रेस, महागठबंधन का हिस्सा नहीं थी और पार्टी ने स्थानीय समीकरण के लिहाज से मोहम्मद मोहसिन को टिकट दिया। कुछ निर्दलीय मुस्लिम प्रत्याशी भी मैदान में थे। इनमें सदरे आलम महत्वपूर्ण थे। मुस्लिम उम्मीदवारों की वजह से आरजेडी को नुकसान उठाना पड़ा। 

मुस्लिम वोटों का नहीं हुआ ध्रुवीकरण 
बीजेपी उम्मीदवार अशोक कुमार को 45,791 वोट मिले जबकि आरजेडी प्रत्याशी फातमी को 45,762 वोट मिले। कांग्रेस के प्रत्याशी ने 5, 679 और सदरे आलम ने 2, 833 वोट हासिल किए। फातमी को सिर्फ 29 वोटों की वजह से हाथ मलना पड़ा। हालांकि 2015 में आरजेडी के साथ जेडीयू आ गई और फातमी ने बीजेपी को हराकर सीट पर कब्जा कर लिया। चुनाव प्रक्रिया में एक वोट की क्या कीमत होती है 2010 में केवटी के नतीजों से बेहतर उदाहरण भला और क्या होगा। 

Share this article
click me!

Latest Videos

खराब हो गया पीएम मोदी का विमान, एयरपोर्ट पर ही फंस गए प्रधानमंत्री । PM Modi । Deoghar Airport
'मुझे लव लेटर दिया... वाह मेरी महबूबा' ओवैसी का भाषण सुन छूटी हंसी #Shorts
CM योगी आदित्यनाथ ने गिना दिया बंटने से अब तक क्या-क्या हुआ नुकसान #Shorts
पहली बार सामने आया SDM थप्पड़ कांड का सच, जानें उस दोपहर क्या हुआ था । Naresh Meena । Deoli-Uniara
क्या है Arvind Kejriwal का मूड? कांग्रेस के खिलाफ फिर कर दिया एक खेल । Rahul Gandhi