कोरोना से बचाव के लिए पूरी दुनिया में जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं। बिहार सरकार बचाव के लिए 31 मार्च तक के लिए लॉक डाउन का ऐलान कर चुकी है। इसके बाद भी बिहार में स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों की मनमानी और लापरवाही थमता नजर नहीं आ रहा है।
गया। कोरोना से बचाव के लिए हरएक संभावित कदम उठाए जा रहे हैं, फिर बिहार में स्वास्थ्य कर्मियों का रवैया वहीं पुराना लापरवाही वाला है। ताजा मामला बिहार के गया जिले का है। जहां कोरोना के एक संदिग्ध मरीज की मौत हो गई। मौत के बाद हॉस्पिटल से शव लेकर परिजन घर आए। अंतिम संस्कार की जरूरी तैयारियां करने के बाद उक्त व्यक्ति के शव को जलाने के लिए चिता पर सजाया गया। इस पूरी प्रक्रिया में करीब तीन-चार घंटे का वक्त लगा। लेकिन तब तक व्यक्ति का सैंपल नहीं लिया जा सका था। जब चिता पर रखने के बाद आग देने की प्रक्रिया की जा रही थी, तब स्वास्थ्य विभाग के कर्मी उक्त व्यक्ति का सैंपल लेने पहुंचे।
संपर्क में आए लोगों का क्वारैंटाइनः सीएस
पीपीटी किट पहन कर पहुंचे स्वास्थ्य कर्मियों ने लाश से सैंपल कलेक्ट किया। जिसे जांच के लिए भेज दिया गया है। अब उक्त व्यक्ति कोरोना पॉजीटिव था या नहीं इसकी रिपोर्ट दो-तीन दिनों बाद आएगी। यदि उक्त व्यक्ति कोरोना पॉजीटिव मिला तो उसके इलाज से लेकर शव के अंतिम संस्कार तक उसके संपर्क में आए सभी लोगों को कोरोना फैल सकता है। ऐसे में गया के उक्त व्यक्ति के परिजन के साथ-साथ आस-पास के लोग भी सशंकित है। मामले में सीएस डॉ. ब्रजेश कुमार सिंह ने कहा कि मृतक जिन-जन लोगों के संपर्क में आया था, सभी को क्वारैंटाइन किया जा रहा है।
उठ रहे हैं कई मौजू सवाल
सीविल सर्जन भले ही संपर्क में आए लोगों को क्वारैंटाइन करने की बात कर रहे हो, लेकिन ये प्रक्रिया उतनी आसान नहीं है। ग्रसित व्यक्ति में कोरोना के लक्षण दो दिन से दो सप्ताह के अंदर सामने आता है। ऐसे में पीड़ित व्यक्ति बीमारी के साथ किन-किन लोगों से मिला, कहां-कहां गया, कितने लोगों के संपर्क में आया, इसका पहचान करना बहुत मुश्किल है। दूसरी बात जब कोई संदिग्ध मरता है, तो हॉस्पिटल से ही उसका सैंपल क्यों कलेक्ट नहीं किया गया। ऐसे क्या मजबूरी थी कि अर्थी पर पड़े लाश का सैंपल लेने स्वास्थ्य कर्मी पहुंचे।