नेपाल-मौसम-कोसी या गंगा, बिहार में हर साल की बाढ़ के लिए आखिर कौन है जिम्मेदार?

बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से पांच लाख से ज्यादा लोगों को बाहर निकाला गया है। 1342 कम्युनिटी किचन चल रहे हैं और बड़ी संख्या में लोगों को अपना घरबार छोड़कर रिलीफ़ कैंपों में जाना पड़ा। मुश्किल यह है कि कई सालों से बार-बार हो रहा है।

Asianet News Hindi | Published : Aug 10, 2020 9:38 AM IST / Updated: Aug 10 2020, 03:16 PM IST

पटना। बिहार के कई इलाकों खासकर नॉर्थ बिहार की किस्मत में हर साल बाढ़ की पीड़ा झेलने का अभिशाप है। इस साल भी एक चक्र की तबाही मचाने के बाद कई इलाकों में बाढ़ का दायरा फिर बढ़ता दिख रहा है। राज्य के 24 और पंचायत बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। हालांकि मौतें पिछले सालों के मुकाबले बेहद कम हैं। निचले इलाकों में अभी भी बाढ़ से हालात बाहुत खराब हैं। 

बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से पांच लाख से ज्यादा लोगों को बाहर निकाला गया है। 1342 कम्युनिटी किचन चल रहे हैं और बड़ी संख्या में लोगों को अपना घरबार छोड़कर रिलीफ़ कैंपों में जाना पड़ा। मुश्किल यह है कि कई सालों से बार-बार हो रहा है और इसका अंत नजर नहीं आता। 

(पिछले कुछ सालों में बिहार में बर्बादी का एक आंकड़ा- नीचे फोटो में देखें )

 

हर साल क्यों होता है ऐसा?
बिहार में बाढ़ के 4 बड़े कारण हैं- प्रकृति से छेड़छाड़, बाहर से आने वाली नदियां, बांध और सरकारी रवैया। ऐसे समझिए कि उत्तर के इलाकों में मानसून बहुत बेहतर रहने पर बिहार में बाढ़ का निश्चित खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। कैसे? दरअसल, जो नदियां यहां बाढ़ से तबाही मचाती हैं उनमें ज़्यादातर के ओरिजिन पॉइंट हिमालय के इलाके हैं। सभी गंगा की सहायक नदियां हैं। 

 

नेपाल से बिहार आने वाली 'खतरनाक' नदियां 
गंगा के सहायक नदियों की भी अपनी सहायक नदियां हैं। जैसे, नेपाल से दाखिल होने वाली बागमती बिहार के कई जिलों से गुजरकर बूढ़ी गंडक में मिलती है। गंडक गंगा में। कमला और कारछा बिहार आकर कोसी में और बिहार में ही कोसी गंगा में मिलती है। गंगा तक पहुंचने वाली नदियां प्राकृतिक रूप से नेपाल में कई छोटी-बड़ी नदियों को अपने में समेटते हुए आती हैं। इनमें कुछ का तो ओरिजिन पॉइंट तिब्बत भी है। बिहार की बाढ़ पर जब भी बात होती है नेपाल से आने वाली नदियों को वजह मान लिया जाता है। जबकि सिर्फ ऐसा नहीं है। किसी देश की सीमा से कभी भी बाढ़ जैसी आपदा की वजहों को जस्टिफाई नहीं किया जा सकता। नेपाल ने बांध बनाए हैं। उसकी मजबूरी ये है कि पानी नहीं छोड़ने पर उसे खुद निचले इलाके में भयानक बाढ़ और बर्बादी का सामना करना पड़ेगा। 

 

नेपाल के आलवा इन नदियों का क्या?
कई सहायक नदियों को समेटते हुए यूपी से गंगा दाखिल होती हैं। ठीक इसी तरह सोन, पुनपुर और फल्गु झारखंड से और पश्चिम बंगाल से महानंदा बिहार तक पहुंचती हैं। बिहार से भी दो नदियां कर्मनाशा और दुर्गावाती गंगा में पहुंचती हैं। नदियों का ओरिजिन और उनके रास्ते प्राकृतिक और भूगोल के हिसाब से बिल्कुल सही हैं। अब ये सोचने वाली बात है कि आखिर गलती कहां हुई या हो रही है? 

किस चीज की कीमत है बाढ़ 
इसका जवाब विकास और इंसानी जरूरतों की सप्लाई में छिपा है जो नदियों के ओरिजिन से लेकर एंड पॉइंट तक उनका पीछा कर रहे हैं। इस बात को नदियों में पानी बढ़ने की वजह से भी समझा जा सकता है। हर नदी की एक नेचुरल कैपिसिटी है। ग्लेशियर का बहुत ज्यादा पिघलना, बहुत ज्यादा बारिश, रास्ते में नदियों के बेसिन पर अतिक्रमण, नदियों पर बने बांध, पहाड़ों में बहुत ज्यादा भूस्खलन और उत्खनन इसकी बड़ी वजहें हैं।

इन दो उदाहरणों से क्लियर होगी बाढ़ की पिक्चर 
यह बताने की जरूरत नहीं कि ग्लोबल वार्मिंग के साथ ओरिजिन पॉइंट से ही नदियों में पानी की मात्रा बढ़ रही है। बांध, पहाड़ों में भूस्खलन-उत्खनन और बेसिन एरिया में अतिक्रमण ने भी नदियों की क्षमता को प्रभावित किया है। इसे दो तरह से से समझें। 1) किसी बर्तन की क्षमता एक लीटर है। लेकिन उसके तल में मिट्टी या बालू डाल दिया जाए तो बर्तन की कैपिसिटी कम हो जाएगी। 2) मान लीजिए एक बर्तन की क्षमता एक लीटर है, लेकिन उसमें दो लीटर पानी डालने की कोशिश की जाए। नदियों पर कई बांध बने हैं और मानसून में उनका पानी छोड़ा जाता है जो नदी की अपनी कैपिसिटी से बहुत-बहुत ज्यादा होता है।  

(सभी इलाके बिहार के हैं)

ऊपर की दोनों स्थितियों में बर्तन में पानी भरने की कोशिश से पानी बाहर निकलेगा। भूस्खलन, उत्खनन, नदियों पर बांध, बेसिन में अतिक्रमण से यही सब हो रहा है। साल दर साल विकास की गति जितनी बढ़ती जा रही है, बाढ़ का सिलसिला और दायरा भी बढ़ता दिख रहा है। और उसकी वजह से नुकसान भी। 

और बाढ़ से बचने के लिए किया क्या जाता है?
पिछले कई सालों में बाढ़ से निपटने के लिए बिहार में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, विश्वबैंक की ओर से नदियों के रास्ते में जगह-जगह छोटे-छोटे तटबंध बनाए गए हैं। जानमाल बचाने के लिए बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पक्के मकान भी बनवाए गए। 1956 में कोसी पर बड़ा बैराज भी बना। कई और छोटे बड़े बांध बनाए गए। लेकिन जब भी मौसम असामान्य हुआ बाढ़ क्षेत्रों में तबाही दिखी। इस साल भी झारखंड, बिहार, यूपी, पश्चिम बंगाल में बारिश ज्यादा हुई। नेपाल और तिब्बत में भी ज्यादा बारिश है। और इसका बुरा असर बिहार में बाढ़ के रूप में दिख रहा है। 

... और बाढ़ की सबसे अच्छी चीज 
बाढ़ की सबसे अच्छी और सिर्फ एक चीज है। बाढ़ के साथ नदियां जमीन पर मिट्टी और गाद की एक परत छोड़कर जाती हैं। ये बहुत उपजाऊ होती है। खेती में नुकसानदायक कीड़े नस्ट होते हैं और जमीन के अंदर पानी के लेवल में वृद्धि होती है। बात बिहार की हुई, लेकिन पूर्वोत्तर समेत देश के दूसरे इलाकों में भी बाढ़ की वजह के पीछे यही बातें हैं। 

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