उत्तराखंड के बाद उत्तर प्रदेश में भी कॉमन सिविल कोड लागू करने की तैयारी है। देश के अन्य राज्यों में भी जहां भाजपा की सरकार है वहां भी इस कानून को लागू करने पर विचार चल रहा है, ऐसे में बिहार में भी इसको लेकर अब अटकलें लगनी शुरू हो गई हैं।
पटना : बिहार (Bihar) में NDA के दो बड़े दलों मे इन दिनों कुछ ठीक दिखाई नहीं दे रहा है। एक बार फिर प्रदेश में बीजेपी और जेडीयू में मतभेद दिखाई दे रहा है। इस बार मुद्दा है कॉमन सिविल कोड (Common Civil Code).. जहां बीजेपी इसे राज्य की जरुरत बता रही है तो वहीं सहयोगी दल जेडीयू का कहना है कि बिहार में इसकी जरुरत नहीं। एक तरफ जहां बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) ने इसका समर्थन किया है तो वहीं JDU संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा का कहना है कि यहां सबकुछ ठीक है, इस कानून की कोई जरुरत ही नहीं।
कॉमन सिविल कोड पर बीजेपी का रुख
दरअसल, साल 2014 के बाद मोदी सरकार ने कई बड़े फैसले लिए हैं। अब चर्चा है कि जल्द ही देश में कॉमन सिविल कोड लागू किया जा सकता है। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में बीजेपी समान नागरिक संहिता लागू करने पर विचार कर रही है। बीजेपी का कहना है कि यह वक्त की मांग है और राष्ट्रहित को देखते हुए सभी दल को इस मुद्दे पर साथ आना चाहिए। इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।
इसकी जरुरत नहीं- जेडीयू
वहीं, बीजेपी की इस मांग से जेडीयू इत्तेफाक नहीं रखती। जदयू नेता उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) ने कहा कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व में यहां सब बेहतर चल रहा है। ऐसे में इस कानून की जरुरत बिहार में नहीं है। उनका कहना है कि हमारे देश की खूबसूरती है अनेकता में एकता। ऐसे में कॉमन सिविल कोड की किसी भी तरह से जरुरत समझ नहीं आती। वहीं, उपेंद्र कुशवाहा के बयान पर बीजेपी का कहना है कि बीजेपी भले ही जेडीयू के साथ गठबंधन में है लेकिन उनकी पार्टी का संविधान अलग है। ऐसे में बिहार के विकास के लिए यह कानून महत्वपूर्ण है। इस पर विचार होने चाहिए।
कॉमन सिविल कोड क्या है
कॉमन सिविल कोड सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होता है। इसके लागू होने से हर धर्म के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा। वर्तमान की बात करें तो देश हर धर्म के लोग कई मामलों को अपने पर्सनल लॉ के तहत करते हैं। मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ है जबकि हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध कानून का पालन करते हैं। अभी हर धर्म के अलग-अलग कानून है तो इससे न्यायपालिका पर भी काफी प्रेशर है। कॉमन सिविल कोड से इससे राहत मिल जाएगी। इसलिए इसकी मांग की जा रही है।
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