क्या है पूर्णिया की महिलाओं का संघर्ष जिसे PM नरेंद्र मोदी ने पूरे देश के लिए बताया मिसाल?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को इस वर्ष में दूसरी बार मन की बात साझा की। रेडियो पर प्रसारित होने वाले इस लोकप्रिय प्रोग्राम में पीएम ने बिहार के पूर्णिया जिले की महिलाओं की तारीफ की। उन्होंने पूर्णिया की महिलाओं के संघर्ष को पूरे देश के लिए प्रेरणा बताया। यहां जानिए आखिर क्या है पूर्णिया की महिलाओं का संघर्ष। 

Asianet News Hindi | Published : Feb 24, 2020 4:08 AM IST / Updated: Feb 24 2020, 12:28 PM IST

पूर्णिया। बिहार के सबसे पुराने जिलों में से एक पूर्णिया को माना जाता  है। पहले पुरैनिया नाम से जाना जाने वाला यह जिला अंग्रेजी हुकूमत के समय भी शासन का एक महत्त्वपूरर्ण केंद्र था। 7 नदियों वाले इस जिले ने हाल में अपनी स्थापना का 250वां समारोह मनाया है। बिहार-बंगाल की सीमा पर होने के कारण इस जिले का सामरिक महत्व है। लेकिन प्राकृतिक आपदाओं के कारण यह जिला लगभग हरवर्ष ही बनता और बिगड़ता है। इसके बाद भी यहां के कुछ गांवों की महिलाओं ने कुछ ऐसा काम किया है, जिसकी तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में की। 

देश के लोगों को प्रेरणा से भरने वाली है पूर्णिया की कहानीः पीएम
पीएम ने कहा कि पूर्णिया की कहानी देश के लोगों को प्रेरणा से भर देने वाली है। विषम परिस्थितियों में पूर्णिया की कुछ महिलाओं ने एक अलग रास्ता चुना। ये वो इलाका है जो दशकों से बाढ़ की त्रासदी से जूझता रहा। यहां खेती और आय के अन्य संसाधनों को जुटाना बहुत मुश्किल रहा है। मगर कुछ महिलाओं ने कोकून से रेशम तैयार कर रेशमी साड़ी का उत्पादन किया। इसकी देशभर में तारीफ हो रही है। हमारा नया भारत अब पुरानी सोच ( के साथ चलने को तैयार नहीं है। खासतौर पर नए भारत की हमारी बहनें और माताएं तो आगे बढ़कर उन चुनौतियों को अपने हाथों में ले रही हैं।

2015-16 में शुरू किया अभियान, मिली महिलाओं का साथ
पीएम की तारीफ से यहां की महिलाएं काफी उत्साहित हैं। कोकून से रेशम उत्पादन के बारे में महिलाओं ने बताया कि 2015 में इसकी शुरुआत की थी। पहले साल 68 हजार रुपए की कमाई हुई। लेकिन अब ये कमाई बढ़कर 16 लाख को पार कर चुकी है।  जीविका के जिला प्रबंधक सुनिर्मल गरेन ने बताया कि मुख्यमंत्री कोशी मलवरी परियोजना के तहत जीविका, उद्योग विभाग, मनरेगा एंव केन्द्रीय रेशम बोर्ड के प्रयास से महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए इस योजना की शुरुआत 2015-16 में की गई। 55 किसानों से शुरू हुए इस अभियान में अब 952 से ज्यादा जीविका समूह की दीदियां जुड़ चुकी है। 

खुद से धागा बनाकर बढ़ा रही हैं परिवार की आमदनी
परियोजना समन्वयक अशोक मेहता ने बताया कि बनमनखी और जलालगढ़ के 54 किसानों के साथ मलबरी की खेती की शुरुआत की गई। 2016-17 में महज 340 किलो कोकून का उत्पादन हुआ जिससे 68 हजार की आय हुई। धीरे-धीरे धमदाहा, पूर्णिया पूर्व और कसबा में भी खेती शुरू हुई। आज 4875 किलो कोकून से 16.7 लाख की आय हो रही है। सभी किसानों के समूहों को मिला कर 2017 में आदर्श जीविका महिला मलवरी रेशम उत्पादक समूह का निर्माण किया गया। समूह की अध्यक्ष नीतू देवी, सचिव रानी देवी और कोषाध्यक्ष नूतन देवी बताती हैं कि पहले समूह किसानों के कोकून खरीद कर बेचने का काम करते थे। अब महिलाएं खुद धागा बनाती है।  जिससे महिलाएं न केवल खुद के पैरों पर खड़ी हुई है बल्कि परिवार को आर्थिक रूप से सबल भी कर रही है। 
 

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