इन वजहों से देख सकते हैं 'गुलाबो सिताबो', अमिताभ-आयुष्मान में दिखी जबर्दस्त नोंकझोंक

अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की फिल्म 'गुलाबो-सिताबो' आज यानी की 12 जून को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म रिलीज की जा चुकी है। इस फिल्म में दोनों स्टार्स के बीच जबरदस्त नोंकझोंक देखने के लिए मिल रही हैं। इसमें दोनों की एक्टिंग भी काबिल-ए-तारीफ है। 

Asianet News Hindi | Published : Jun 12, 2020 6:39 AM IST / Updated: Jun 12 2020, 12:32 PM IST

मुंबई. अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की फिल्म 'गुलाबो-सिताबो' आज यानी की 12 जून को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म रिलीज की जा चुकी है। इस फिल्म में दोनों स्टार्स के बीच जबरदस्त नोंकझोंक देखने के लिए मिल रही हैं। इसमें दोनों की एक्टिंग भी काबिल-ए-तारीफ है। डायरेक्टर सुजीत सरकार ने एक बेहद और अनोखे अंदाज में लखनऊ के दो फुकरे मिर्जा और बांके की कहानी को पेश किया है। इसमें बीच-बीच में कॉमेडी भी देखने के लिए मिल रही है। 

बिना सिनेमाघरों की रिलीज के ये फिल्म फिलहाल केवल वो ही लोग देख पाएंगे, जो इंटरनेट पर फिल्में देखना पसंद करते हैं, लेकिन कुल मिलाकर फिल्म एक मजेदार अनुभव है। तो गुलाबो सिताबो में क्या कुछ खास है? आइए जानते हैं-

कहानी

आयुष्मान खुराना की 'विक्की डोनर' जूही चतुर्वेदी ने ही लिखी थी। इस फिल्म की कहानी ने सभी को शॉक्ड कर दिया था, लेकिन उसकी तरह गुलाबो सिताबो की कहानी लोगो को नहीं चौंकाती है। ये 'पीकू' की तरह सपाट है। यूं कहे तो दो शेख चिल्लियों की कहानी है। 'गुलाबो सिताबो' दरअसल, उन दो कठपुतलियों का नाम है जो सूत्रधार की तरह पात्रों की फितरत को अपने तमाशे में बताती हैं।

'गुलाबो सिताबो' की कहानी लखनऊ की एक हवेली 'बेगम महल' की है। इसमें उम्रदराज अमिताभ बच्चन यानी मिर्जा अपनी पत्नी बेगम उनके नौकरों के साथ रहते हैं। इसी हवेली में कुछ किराएदार हैं, जिसमें से एक है बांके रस्तोगी और इनका परिवार भी रहता है। मिर्जा को हमेशा पैसों की किल्लत रहती और वो हमेशा इन किराएदारों से किराए का तकाजा करता रहता है। बांके के साथ मिर्जा का छत्तीस का आंकड़ा है।

एक्टिंग

फिल्म 'गुलाबो सिताबो' में शुरू से लेकर अंत तक अमिताभ बच्चन छाए हैं और मिर्जा के किरदार को बड़ी ही खूबसूरती से उन्होंने पेश किया है। अमिताभ ने अपनी चिर-परिचित आवाज को बदलने से लेकर कूबड़ निकालकर मिर्जा के किरदार को जीवंत कर दिया है। वहीं, अब तक हमेशा दिल्ली के लड़कों वाले किरदार निभाने वाले आयुष्मान खुराना इस बार एक देहाती किरदार निभा रहे हैं। लखनऊ के एक दुकानदार का लहजा और बॉडी लेंग्वेज उन्होंने बखूबी पकड़ा है। आयुष्मान नए किरदारों को करना काफी पसंद करते हैं।

 

डायरेक्शन 

डायरेक्टर शूजित सिरकार का कसा हुआ निर्देशन फिल्म की खासियत है। एक बेहद सपाट कहानी को उन्होंने कैसे अपने सीन्स से मजेदार बनाया है। एक और खास बात इस पुरुष प्रधान फिल्म में ये है कि महिला किरदारों को काफी सशक्त दिखाया गया है। यूं तो फिल्म की कहानी अमिताभ और आयुष्मान के इर्द-गिर्द घूमती रहती है, लेकिन ये किरदार मूर्खता भरे हैं। वहीं पर महिला किरदारों को तेज तर्रार और बुद्धिमान दिखाया गया है, फिर चाहे वो बेगम हो, गुड्डो हो या फिर वो आयुष्मान की प्रेमिका फौजिया हो।

सॉन्ग्स 

गुलाबो सिताबो के सॉन्ग्स काफी बेहतर हैं। ये सिचुएशनल हैं, लेकिन शांतनु मोइत्रा ने फिल्म के देसी रूप के हिसाब से लोक गीत पर आधारित संगीत बनाया है। फिल्म के बैकग्राउंड म्यूजिक का उल्लेख करना आवशयक है, जो एक सीन से दूसरे सीन को जोड़ने के साथ-साथ और कलाकरों की एक्टिंग को गति प्रदान करता है।

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