बचपन में हर रात कब्रिस्तान जाते थे कादर खान, अमिताभ की इस फिल्म में फिल्माया था सीन

कादर खान जन्म 22 अक्टूबर, 1937 को अफगानिस्तान के काबुल में हुआ था। उन्होंने साल 1973 में फिल्म दाग से फिल्मी करियर की शुरूआत की थी। आज उनके जन्मदिन पर उनके बचपन से जुड़ा एक वाक्या जो उन्होंने अपनी एक फिल्म 'मुकद्दर का सिकंदर' में फिल्माया था।

मुंबई. कादर खान का सिनेमा से नाता लगभग 44 साल का रहा। उन्होंने इतने सालों में सैकड़ों फिल्मों में काम किया। उन्होंने कई फिल्में लिखी और वहीं कई के लिए डायलॉग भी लिखे। उनके निभाए किरदारों को लोग आज भी याद करते हैं। कभी उन्होंने दर्शकों को अपने काम से गुदगुदाया तो कभी गंभीर और निगेटिव रोल करके उन्हें बांधे भी रखा। प्रशंसकों ने उन्हें हर किरदार में पसंद किया। हालांकि कई बार ऐसी बातें भी सामने आई की वे फिल्मों में वापस दिखेंगे लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। साल 2018 का आखिरी दिन उनके जीवन का भी आखिरी दिन साबित हो गया। उनकी मृत्यु 31 दिसंबर 2018 को कनाडा में हो गई थी। आज उनकी बर्थ एनिर्वसरी पर उनके जीवन से जुड़ा एक किस्सा हम आपको बताते हैं।

बॉलीवुड में 4 दशकों से ज्यादा काम कर उन्होंने अपना एक ओहदा कायम कर चुके कादर खान की जड़े अफगानिस्तान से जुड़ी थी। उनका जन्म 22 अक्टूबर, 1937 को अफगानिस्तान के काबुल में हुआ था। उन्होंने साल 1973 में फिल्म 'दाग' से फिल्मी करियर की शुरूआत की थी। आज उनके जन्मदिन पर उनके बचपन से जुड़ा एक वाकया जो उन्होंने अपनी एक फिल्म 'मुकद्दर का सिकंदर' में फिल्माया था।

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कब्रिस्तान जाने का ये था कारण

किस्सा ये है कि कादर खान बचपन में रात के वक्त कब्रिस्तान जाया करते थे। मीडिया रिपोर्ट्स की माने मुंबई में कादर खान रोज रात को अपने घर के पास वाले कब्रिस्तान जाते थे और वहां जा कर रियाज करते थे। ऐसे ही एक दिन वे वहां रियाज कर रहे थे कि अचानक एक टॉर्च की लाइट उनके चेहरे पर आई। टॉर्च की रोशनी करने वाले आदमी ने पूछा कि वे यहां क्या कर रहे हैं?
खान ने जवाब में कहा "मैं यहां रियाज कर रहा हूं। मैं दिनभर में जो भी अच्छा पढ़ता हूं रात में उसका यहां आकर रियाज करता हूं। सवाल करने वाला शक्स उनसे काफी प्रभावित हुआ और उन्हें नाटकों में काम करने की सलाह दी। तभी से उन्होंने नाटकों में काम करना शुरू किया। उस टॉर्च वाले शक्स का नाम था अशरफ खान।"

इस तरह ये किस्सा आया था स्क्रीन पर

ये वाकया कादर खान ने साल 1977 में जब फिल्म 'मुकद्दर का सिकंदर' लिखी तो ये उसका एक काफी अहम सीन बना। फिल्म में जब बच्चा कब्रिस्तान में जा कर रोता है और उसकी मुलाकात एक फकीर से होती है। हालांकि ये बात बाद में उनके एक इंटरव्यू से पता लगी की ये किस्सा उनके खुद के जीवन से जुड़ा था।  

उन्हें आखिरी बार स्क्रीन पर साल 2017 में रिलीज हुई फिल्म 'मस्ती नहीं सस्ती' में देखा गया था।

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