Doctor G Movie Review: ना कहानी में दम, ना डायरेक्शन खास, देखने के लिए भी चाहिए कम से कम 18 की उम्र

'डॉक्टर जी' अनुभूति कश्यप के निर्देशन में बनी पहली फिल्म है। इसमें पहली बार आयुष्मान खुराना और रकुल प्रीत सिंह साथ नजर आ रहे हैं। इतना ही नहीं, आयुष्मान के करियर की यह पहली फिल्म है, जिसे सेंसर बोर्ड ने एडल्ट सर्टिफिकेट दिया है।

Gagan Gurjar | Published : Oct 14, 2022 7:25 AM IST / Updated: Oct 14 2022, 03:06 PM IST

रेटिंग2/5
डायरेक्टरअनुभूति कश्यप
स्टार कास्टआयुष्मान खुराना, रकुल प्रीत सिंह, शेफाली शाह, शीबा चड्ढा
प्रोड्यूसरजंगली पिक्चर्स
म्यूजिक डायरेक्टरअमित त्रिवेदी
जोनरसोशल कॉमेडी ड्रामा

एंटरटेनमेंट डेस्क. Doctor G Review: आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) और रकुल प्रीत सिंह (Rakul Preet Singh) स्टारर फिल्म 'डॉक्टर जी' सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। अक्सर सामाजिक मुद्दों से जुड़े नए-नए विषयों पर फिल्म करने वाले आयुष्मान खुराना की यह पहली फिल्म है, जिसे A सर्टिफिकेट मिला है। यानी इस फिल्म को 18 साल और उससे ज्यादा उम्र के लोग ही देख सकते हैं। अगर आप भी फिल्म देखने की प्लानिंग कर रहे हैं तो पहले जान लीजिए कि आखिर यह फिल्म कैसी है...

फिल्म की कहानी

फिल्म की कहानी है उदित गुप्ता (आयुष्मान खुराना) की, जो भोपाल के रहने वाले हैं और मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। वे हमेशा से ऑर्थोपिडिशियन बनना चाहते हैं। लेकिन सही रैंक ना मिल पाने की वजह से उन्हें गाइनोकोलॉजिस्ट की सीट मिल पाती है। समाज में हमेशा से यह धारणा है कि गाइनोकोलॉजी महिलाओं का डिपार्टमेंट है और यही वजह है कि उदित अपनी सीट से नाखुश है। लेकिन मरता क्या ना करता, इसलिए गाइनोकोलॉजी विभाग में ही हिस्सा ले लिया। लड़कियों से भरी इस क्लास में उदित एकमात्र लड़का है। यह वही क्लास में जहां फातिमा यानी रकुल प्रीत सिंह भी पढ़ाई कर रही है। उदित कैसे इस क्लास में अपना तालमेट बिठा पाता है? क्या वह गाइनोकोलॉजिस्ट बन आता है? अगर हां तो कैसे अपने करियर को आगे बढ़ाता है? इन सब सवालों के जवाब जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

कैसा है डायरेक्शन?

फिल्म का डायरेक्शन अनुभूति कश्यप ने किया है और यह बतौर डायरेक्टर उनकी पहली फिल्म है।  लेकिन प्रयास कुछ हद तक असफल होता नजर आता है। जी हां, फिल्म की शुरुआत ही बेहद खराब है। कहने को फिल्म सोशल कॉमेडी है, लेकिन यह घिसे-पिटे चुटकुलों से बाहर नहीं निकल पाती। फिल्म का फर्स्ट हाफ निराश करता है। इंटरवल आते-आते दर्शक बोर हो जाते हैं। शेफाली शाह की एंट्री के बाद फिल्म कुछ हद तक संभलती है। लेकिन पूरी फिल्म के हिसाब से देखें तो एक साथ कई मुद्दों को उठाने की वजह से यह बिखरी-बिखरी नजर आती है।

कैसी है एक्टिंग?

आयुष्मान खुराना अपनी शानदार अदाकारी के लिए जाने जाते हैं। खासकर सामाजिक मुद्दों पर बनी उनकी फिल्मों में वे कमाल के दिखते हैं।  लेकिन इस बार उनकी भूमिका कुछ फीकी है। एक भोपाली लड़के की भाषा और हावभाव को वे सही तरीके से कैरी नहीं कर पाए हैं। रकुल प्रीत सिंह ने फातिमा के रोल में अपना बेहतर परफॉर्मेंस दिया है। शेफाली शाह बेस्ट हैं। हमेशा की तरह उनकी एक्टिंग दर्शकों के दिलों पर अपनी छाप छोड़ती है। आयुष्मान की मां के रोल में शीबा चड्ढा ने जबर्दस्त काम किया है।

फिल्म का संगीत

फिल्म का म्यूजिक अमित त्रिवेदी ने दिया है, लेकिन वे इसके साथ न्याय नहीं कर पाए हैं। फिल्म का ऐसा कोई गाना नहीं है, जो थिएटर से निकलते वक्त दर्शकों की जुबान पर चढ़ा सुना जा सके। बैकग्राउंड स्कोर कुछ हद तक ठीक-ठाक है।

देखें या नहीं?

अगर आप रकुल प्रीत सिंह के फैन हैं तो यह फिल्म देख सकते हैं। शेफाली शाह और शीबा चड्ढा की एक्टिंग पसंद करते हैं तो भी आप यह फिल्म देख सकते हैं। आयुष्मान खुराना के प्रशंसकों को यह फिल्म निराश कर सकती है। फिर भी अगर आप फिल्म देखना चाहते हैं तो दिमाग घर पर रख कर जाएं। क्योंकि दिमाग लगाएंगे तो फिल्म आधी भी नहीं देख पाएंगे।

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