मशहूर दिवंगत एक्ट्रेस प्रत्युषा बनर्जी के जन्मदिन पर उनकी खास दोस्त रहीं एक्ट्रेस काम्या पंजाबी ने एशियानेट न्यूज हिंदी से बात करते हुए बताया कि उनका प्रत्युषा के साथ कैसा बॉन्ड था। साथ ही एक्ट्रेस ने प्रत्युषा के आखिरी पलों के बारे में भी जिक्र किया...
एंटरटेनमेंट न्यूज. 'बालिका वधु' फेम दिवंगत एक्ट्रेस प्रत्युषा बनर्जी का आज यानि 10 अगस्त को जन्मदिन है। छोटी सी उम्र में बड़ा नाम कमाने वालीं प्रत्युषा कई शोज में नजर आई थीं जिनमें से एक 2013 में टेलीकास्ट हुआ सलमान खान का रियलिटी शो 'बिग बॉस 7' भी था। इसी शो में प्रत्युषा की मुलाकात एक्ट्रेस काम्या पंजाबी से भी हुई थी जो बाद में उनकी सबसे खास दोस्त बन गईं। आज प्रत्युषा के जन्मदिन पर काम्या ने एशियानेट न्यूज हिंदी से एक्सक्लूसिव बात की और अपनी दोस्त को याद किया। उन्होंने प्रत्युषा के बारे में क्या बताया पढ़िए उन्हीं की जुबानी...
वो कल से ज्यादा आज की परवाह करती थी
'हमारी दोस्ती 'बिग बॉस 7' से शुरू हुई थी। हमारी दोस्ती पर्सनल लाइफ से जुड़ी हुई थी। हमने साथ में कभी कोई प्रोजेक्ट तो किया नहीं पर 'बिग बॉस' के घर पर जो हमने वक्त बिताया। हम वहीं से एक-दूसरे के दोस्त बने। प्रत्युषा उन लोगों में से थी जो कल से ज्यादा आज के बारे में सोचकर चलती थी। उसे अपने फैसले लेने आते थे। जब वो मुझसे मिली तो वो ऑलरेडी एक बड़ा नाम बन चुकी थी। अपने काम को लेकर मैच्योर रहती थी पर फिर भी उसमें बचपना था। वो दिल से बच्चों की तरह ही मासूम थी। हमेशा फुल ऑफ लाइफ रहती थी। हम एक दूसरे के साथ हर चीज शेयर करते थे।'
मेरी 'बिग बॉस' के घर से बाहर निकलने से पहले ही वो मेरी बेटी की मौसी बन चुकी थी
'बिग बॉस के घर में हर इंसान के कई रिश्ते बनते हैं। जब हम बिग बॉस के घर में थे तो वो मुझसे पहले एलिमिनेट हो गई थी। उसके आ जाने के बाद मैं एक-दो महीने और घर के अंदर थी। तो मुझे नहीं पता था कि प्रत्युषा के साथ मेरा रिश्ता कितना लंबा जाएगा। आगे हम कितने गहरे दोस्त बनेंगे। पर जिस दिन मैं बिग बॉस के घर के बाहर आई और अपनी बेटी से मिली तो मेरी बेटी ने मुझसे सबसे पहले यही कहा कि, 'मैं प्रत्युषा मौसी से मिली..'। यह दर्शाता है कि प्रत्युषा को रिश्ते निभाना आता था। मैं तो घर के अंदर थी पर वो बाहर निकलकर मेरी मां और मेरी बेटी से मिल चुकी थी। उसे पता था कि काम्या हमेशा मेरी दोस्त रहेगी। वहीं जब मैं अपनी गाड़ी में पहुंचीं तो मेरी मां ने मेरा फोन मुझे देते हुए कहा कि तू सबसे पहले प्रत्युषा को कॉल कर क्योंकि वो कई बार कॉल कर चुकी है। तो इतना ही कहूंगी कि उसे रिश्ता निभाना आता था और उसने अच्छे से निभाया भी। इसके बाद हम एक दूसरे के फ्रेंड सर्कल से मिले। मेरे दोस्तों ने उसका स्वागत किया। वो मेरे परिवार से पहले ही मिल चुकी थी तो मैं उसकी फैमिली से मिली। पार्टी की और वैकेशन मनाए।'
पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई थी
'मैं दिल्ली में थी और किसी प्रोजेक्ट की शूटिंग खत्म करके दो दिन दिल्ली घूमने का प्लान बना रही थी। मैं खान मार्केट में घूम रही थी और इसी मेरी एक दोस्त का फोन आया और उसमें मुझे बताया कि टीवी पर ऐसी-ऐसी खबर चल रही है। मैंने उसकी बात पर यकीन नहीं किया क्योंकि यह बहुत बड़ी बात थी और मैं कभी ऐसा सोच भी नहीं सकती थी। पर जब मैंने सोशल मीडिया चैक किया तो मुझे बड़ा झटका लगा। अचानक मुझे जोर से घबराहट होने लगी और मैं सड़क पर ही बैठ गई। इसके बाद कई दोस्तों ने कॉल करके मुझे बताया कि यह सच है। उस वक्त मुझे समझ आया कि पैरों के नीचे से जमीन खिसकना किसे कहते हैं। बहुत ही छोटी थी वो और यह कोई उम्र नहीं उसके जाने की। और इस तरह से तो बिल्कुल भी नहीं जाना चाहिए था।'
वो किसी बात को लेकर परेशान थी
'मुझे बहुत अफसोस रहा कि मैं उस वक्त मुंबई में नहीं थी। इससे पहले जब मैं दिल्ली में थी और शूट कर रही थी तब उसका मुझे कॉल आया था। वो परेशान लग रही थी पर उसने मुझे फोन पर कुछ नहीं बताया था। तो मैंने उससे कहा था कि मैं आती हूं मुंबई, तब तक तुम ठीक रहो और फिर हम मिलते हैं। मुझे यह नहीं पता था कि वो इतना बड़ा कदम उठा लेगी। क्योंकि हम रोजाना के जीवन में कई चीजों को लेकर परेशान होते हैं तो मैंने इतना ही सोचा कि जाकर मिलूंगी और उसे समझा लूंगी पर कभी नहीं सोचा था कि यह सब हो जाएगा।'
कई चक्कर लगाए पर चार्जशीट ही खत्म नहीं हो रही थी
'हम काफी वक्त तक उसे न्याय दिलाने के लिए लड़ते रहे। सबसे दुखद यह था कि इतना लड़ने और आवाज उठाने के बाद भी उसके केस का एक बार ट्रायल तक शुरू नहीं हुआ। तो मुझे लगता है कि कहीं हमारे सिस्टम में ही कोई कमी थी। और हम लड़ते भी तो किस-किस से ? एक लड़की को इंसाफ दिलाने के लिए लड़ते या सिस्टम से लड़ते? या फिर अपने परिवार के लिए लड़ते? क्योंकि इस केस पर लड़ते वक्त मुझे अपनी बेटी को लेकर भी कई तरह की धमकियां मिली हैं। फिर भी हम काफी वक्त तक लड़ते रहे। कोर्ट के कई चक्कर लगाए पर चार्जशीट ही खत्म नहीं हो रही। हजारों पन्नों की तो चार्जशीट ही बन रही है। तो ये सब करने के बाद मुझे समझ आ गया कि हमारे देश में इंसान की जान की कोई कीमत नहीं है। फिर एक वक्त के बाद लगा कि वो तो चली गई है पर अब उसके पैरेंट्स के लिए यह सब टॉर्चर की तरह था। फिर सोचा कि जो जिंदा हैं उन्हें ही सुकून से रहने दें और यह सोचकर हमने लड़ना बंद कर दिया। न हम थके और न हम हारे, बस हमने दीवार पर सर पीटना बंद कर दिया।'
बनने नहीं दूंगी कोई मनगढ़ंत कहानी
'मैंने खुद प्रत्युषा पर कभी कुछ लिखने या कहानी बनाकर दिखाने की कोशिश नहीं की। ना ही मैं चाहती हूं कि प्रत्युषा पर कभी कोई फिल्म बनाए और अगर कभी ऐसा होगा भी तो मैं होने नहीं दूंगी। क्योंकि वो अब जा चुकी है। उसके बारे में बात करके कई लोग फायदा उठाना चाहेंगे। कोई बोलेगा कि मैं उसको डेट कर रहा था तो कोई कुछ और बोलेगा। तो मैं बस इतना कहूंगी कि वो जा चुकी है और अब वो खुद को डिफेंड नहीं कर सकती। मैं खुद उसकी इतनी करीबी दोस्त थी मुझे तक नहीं पता कि उसकी लाइफ में ऐसा क्या हुआ कि उसने अपनी जान ले ली तो किसी को क्या ही पता होगा। इस मामले पर सिर्फ पैसे कमाने के लिए कोई अगर मनगढ़ंत कहानी बनाएगा तो मैं उसे बनाने भी नहीं दूंगी।'
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