लोगों को नहीं पसंद आई संजय दत्त और आलिया भट्ट की 'सड़क 2', लेकिन इस एक वजह से देख सकते हैं फिल्म

संजय दत्त, आलिया भट्ट और आदित्य रॉय कपूर स्टारर फिल्म 'सड़क 2' बीते दिनों ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज की जा चुकी है। उसके ट्रेलर की तरह ही फिल्म को भी लोगों ने नापसंद किया है। एक लंब समय के बाद डायरेक्टर महेश भट्ट ने निर्देशन में 'सड़क 2' से वापसी की थी। लेकिन, उन्हें ये फिल्म थोड़ा निराश जरूर करेगी।

मुंबई. संजय दत्त, आलिया भट्ट और आदित्य रॉय कपूर स्टारर फिल्म 'सड़क 2' बीते दिनों ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज की जा चुकी है। उसके ट्रेलर की तरह ही फिल्म को भी लोगों ने नापसंद किया है। एक लंब समय के बाद डायरेक्टर महेश भट्ट ने निर्देशन में 'सड़क 2' से वापसी की थी। लेकिन, उन्हें ये फिल्म थोड़ा निराश जरूर करेगी। यह मूवी साल 1991 में आई संजय दत्त और पूजा भट्ट स्टारर 'सड़क' का सीक्वल है। अब इसके दूसरे सीक्वल में आगे की कहानी को दिखाया गया है। लेकिन, लोगों को ये खास पसंद नहीं आई और क्रिटिक्स भी इसे 5 में से 2 स्टार दे रहे हैं। ऐसे में हम बता रहे हैं इस फिल्म को देखने की एक वजह, जिससे आप इसे देख सकते हैं।

कहानी

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'सड़क 2' की कहानी आर्या (आलिया भट्ट) और म्यूजिशियन विशाल (आदित्य रॉय कपूर) की है। आर्या मूवी में देसाई ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज की अकेली वारिस है, जिसकी मां शकुंतला देसाई की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो जाती है। इसके बाद आर्या अपनी मां की हत्या का बदला लेकर उन्हें न्याय देने के मिशन पर निकलती है। आर्या अपनी मां की आखिरी इच्छा को पूरा करना चाहती है और इसके लिए उसे कैलाश जाना होता है और यहीं से फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है और इसके बाद संजय दत्त का किरदार शुरू होता है। बाकी की कहानी को जानने के लिए फिल्म देखा होगा।

इस वजह से नहीं पसंद आ रही 'सड़क 2' 

'सड़क 2' की कहानी ही बेहद उदासीपूर्ण माहौल से शुरू होती है, जिसमें रवि (संजय दत्त) अपनी मरहूम पत्नी पूजा (पूजा भट्ट) की यादों में जी रहा है। बता दें, इस सीक्वल में पूजा मर चुकी होती है। रवि पत्नी की याद की वजह से आत्महत्या की कोशिश करता है, लेकिन कर नहीं पाता। आर्या भी तूफान की तरह रवि की जिंदगी में आती है। कहानी में जल्दी-जल्दी ट्विस्ट आते हैं और इन्हीं में फिल्म का पूरा स्क्रीनप्ले पटरी से उतर जाता है। 


फिल्म के डायलॉग्स पुराने से लगते हैं और ऑडियंस को बोर करने लगते हैं। ऐसा लगता है कि मेकर्स ने फिल्म को लिखने में ज्यादा मेहनत नहीं की है और उन्हें लगता है कि ऑडियंस नॉस्टेलजिया पर ही फिल्म देख लेगी। नई ऑडियंस के एक बड़े वर्ग ने 'सड़क' का पहला पार्ट देखा भी नहीं है। फिल्म के विलन जरूरत से ज्यादा ड्रामा करते लगते हैं और एक्शन नकली।

निराश करती है आलिया भट्ट की एक्टिंग 

अपनी बेहतरीन एक्टिंग के लिए जानी जाने वाली आलिया भट्ट कुछ इमोशनल सीन के अलावा इस बार अपने किरदार के साथ न्याय नहीं कर पाती हैं। आदित्य रॉय कपूर को करने के लिए कुछ खास मिला नहीं है। संजय दत्त के कुछ इमोशनल सीन अच्छे हैं, लेकिन उनके किरदार की भी अपनी सीमाएं हैं। आलिया के पिता में के किरदार में जिशू सेनगुप्ता और ढोंगी धर्मगुरु के किरदार में मकरंद देशपांडे जरूर प्रभाव छोड़ते हैं, लेकिन मकरंद देशपांडे जैसे मंझे हुए कलाकार से भी ओवर एक्टिंग करवा ली गई है और बहुत से अच्छे सीन भी अजीब लगने लगते हैं। एक बेहतरीन डायरेक्टर के तौर पर महेश भट्ट ने अच्छी फिल्में बनाई हैं, लेकिन इस बार वह पूरी तरह निराश करते हैं और उनके साथ असफलता ही लगी। 

इस एक वजह से देख सकते हैं फिल्म 

अगर आप साल 1991 में आई फिल्म 'सड़क' के नॉस्टैलजिया में अभी तक हैं तो देख सकते हैं।

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