Lata Mangeshkar सिर्फ भारत की नहीं पाकिस्तान की भी उतनी ही थीं, सरहदों में नहीं कैद हुआ कभी संगीत

Published : Feb 12, 2022, 07:15 PM ISTUpdated : Feb 12, 2022, 07:18 PM IST
Lata Mangeshkar सिर्फ भारत की नहीं पाकिस्तान की भी उतनी ही थीं, सरहदों में नहीं कैद हुआ कभी संगीत

सार

लता मंगेशकर भारत और पाकिस्तान के बीच की वहीं कड़ी थीं। इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि पाकिस्तान के सरकारी टीवी पर भी लता मंगेशकर के निधन की खबर प्रसारित की गई। 

मुंबई. सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) हमारे बीच नहीं हैं। 92 साल की उम्र में वो इस दुनिया को अलविदा कह गई। इनके जाने से सिर्फ हमारे देश के लोगों की आंखें ही नम नहीं हुई, बल्कि पूरी दुनिया में मौजूद लता के चाहनेवालों पर भी गम की बिजलियां गिरी। खास कर हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान पर। यहां के लोग भी स्वर कोकिला के जाने गमगीन नजर आएं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran khan) ने शोक जताते हुए कहा कि  दुनिया के सबसे बेहतरीन सिंगर्स में से एक को खो दिया है।

पाकिस्तान और भारत जो एक दूसरे राजनीतिक स्तर पर दुश्मन मानते हैं। उन्हें सिर्फ संगीत और क्रिकेट जोड़ता है। लता मंगेशकर भारत और पाकिस्तान के बीच की वहीं कड़ी थीं। इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि पाकिस्तान के सरकारी टीवी पर भी लता मंगेशकर के निधन की खबर प्रसारित की गई। इसके अलावा प्राइवेट न्यूज चैनलों पर भी लता जी के गानें चलाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।

कला ही भारत और पाकिस्तान को ला सकता है करीब

पाकिस्तानी राजनेता से लेकर क्रिकेट खिलाड़ी तक सबने उनके जाने पर शोक जताया। वहां के मनोरंजन जगत पर तो लता दीदी के जाने का गम इस कदर टूटा कि हर कलाकार सामाने आकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। उनके गीतों ने अपने देश और विदेशों में भी विभिन्न धर्मों, जातियों, वर्गों और भाषाओं के अनगिनत लोगों के जीवन को प्रभावित किया, यह एक ऐसी उपलब्धि है, जो दुर्लभतम व्यक्तियों को ही मिलती है।  7 बार नेशनल अवॉर्ड जीत चुके म्यूजिक डायरेक्टर विशाल भारद्वाज ने भी एक बार कहा था कि दोनों देशों को अगर कुछ करीब ला सकता है वो है कला। 

लता मंगेशकर जितनी भारत की उतनी पाकिस्तान की

वाकई संगीत को सरहदों में कैद नहीं किया जा सकता है। लता मंगेशकर की आवाज कभी किसी बंदिश में नहीं जकड़ी गई। 1980 में जब पाकिस्तान में  जनरल जिया उल हक का सैन्य शासन था उस दौरान लता दीदी खाड़ी देशों के दौरे पर गई थीं। इस दौरान  वहां पाकिस्तानी दूतावास ने उन्हें एक संगीत कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने खुशी से स्वीकार कर लिया। इसके बाद दूतावास को इस्लामाबाद से एक दुश्मन देश की गायिका को आमंत्रित करने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। इस पर पाकिस्तान के सबसे बड़े अखबार डॉन में एक स्तंभकार ने सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए पूछा कि 'क्या संगीत को सरहदों में कैद किया जा सकता है।'

लता की आवाज अमर है और बंधनों से परे है

इतना ही नहीं, स्तंभकार ने हुक्मरान से सवाल किया कि क्या लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी केवल भारत के हैं? क्या मेहंदी हसन सिर्फ पाकिस्तान के हैं।' कहने का मतलब यह है कि लता मंगेशकर सिर्फ भारत से नहीं बल्कि हर उस जगह से जुड़ी थी जहां संगीत को पूजा जाता है। जहां संगीत प्रेमी बसते हैं। आज भले ही वो हमारे साथ नहीं है, लेकिन उनकी आवाज अमर है। भारत हो या फिर पाकिस्तान..हर जगह वो अपनी आवाज के जरिए लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगी। ना तो कल उनकी आवाज को सरहद बांध सका था और ना ही अब और ना ही कभी बांधा जा सकेगा।

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